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बेटियों को बुधवार के दिन क्यों नहीं जाना चाहिए ससुराल।*






वार के अनुसार निषेध कार्य
शास्त्रों में दिन के अनुसार सप्ताह के हर दिन कुछ कार्य करने की मनाही है। 

इसमें रोजाना जीवन से जुड़ी चीजों के अलावा यात्रा करने तक के लिए निषेध वार शामिल हैं। यहां हम आपको बुधवार से जुड़ी उस मान्यता के विषय में बता रहे हैं जिसके अनुसार इस दिन बेटियों को ससुराल विदा करने की मनाही है।

बुधवार के दिन बेटी को विदा करना/करना आपके लिए और आपकी बेटी के लिए अत्यंत दुखदायी हो सकता है। 

अगर आपकी बेटी की बुध ग्रह की दशा खराब हो तो आपको ऐसी गलती बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए।

बुधवार के दिन बेटी को विदा करना
ऐसी मान्यता है कि बुधवार के दिन अपनी बेटियों को ससुराल के लिए विदा नहीं करना चाहिए। 

इस दिन बेटी को विदा करने से रास्ते में किसी प्रकार की दुर्घटना होने की संभावना रहती है। 

इतना ही नहीं, आपकी बेटी का अपने ससुराल से संबंध भी बिगड़ सकता है। 

शास्त्र में इस अपशकुन से जुड़े कारणों की भी व्याख्या है।

*‘बुध’ ग्रह ‘चंद्र’ की शत्रुता*

एक पौराणिक मान्यता के अनुसार ‘बुध’ ग्रह ‘चंद्र’ को शत्रु मानता है लेकिन ‘चंद्रमा’ के साथ ऐसा नहीं है, वह बुध को शत्रु नहीं मानता। 

ज्योतिष में चंद्र को यात्रा का कारक माना जाता है और बुध को आय या लाभ का।

               *बुधवार कथा*

इसलिए बुधवार के दिन किसी भी तरह की यात्रा करना नुकसानदेह माना गया है। यदि बुध खराब हो तो दुर्घटना या किसी तरह की अनिष्ट घटना होने की संभावना बढ़ जाती है। 

इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर में मधुसूदन नामक साहूकार का विवाह सुंदर और गुणवान कन्या संगीता से हुआ था।

एक बार मधुसूदन ने बुधवार के दिन पत्नी के माता-पिता से संगीता को विदा कराने के लिए कहा। उसके सास-ससुर बुधवार को अपनी बेटी को विदा नहीं करना चाहते थे। उन्होंने दामाद को बहुत समझाया लेकिन मधुसूदन नहीं माना। वह संगीता को साथ लेकर वहां से रवाना हो गया।

दोनों बैलगाड़ी से घर लौट रहे थे। तभी कुछ दूरी पर उसकी गाड़ी का एक पहिया टूट गया। वहां से दोनों पैदल ही चल पड़े। 

किसी जगह पहुंचकर संगीता को प्यास लगी तो मधुसूदन उसे एक पेड़ के नीचे बिठाकर पानी लेने चला गया।
थोड़ी देर बाद ही वह जल लेकर वापस आ गया। लेकिन वह आश्चर्य में पड़ गया, क्योंकि उसकी पत्नी के पास मधुसूदन की ही शक्ल-सूरत का एक दूसरा व्यक्ति बैठा हुआ था। 

संगीता भी उन दोनों में अपने असली पति को नहीं पहचान पाई। 

मधुसूदन ने उस व्यक्ति से पूछा, “तुम कौन हो और मेरी पत्नी के पास क्यों बैठे हो?”

उस व्यक्ति ने कहा- “अरे भाई, यह मेरी पत्नी संगीता है लेकिन तुम कौन हो जो मुझसे ऐसा प्रश्न कर रहे हो?” 

यह जवाब सुनकर मधुसूदन को और भी गुस्सा आ गया और उसे नकली कहकर वह उससे झगड़ने लगा। उनका झगड़ा देखकर पास ही नगर के सिपाही वहां आ गए। 

सिपाही उन दोनों को पकड़कर राजा के पास ले गए।
राजा भी निर्णय नहीं कर पा रहा था। राजा ने दोनों को कारागार में डाल देने के लिए कहा। 

राजा के फैसले से असली मधुसूदन भयभीत हो गया। 

तभी एक आकाशवाणी हुई- “मधुसूदन! तूने संगीता के माता-पिता की बात नहीं मानी और बुधवार के दिन अपनी पत्नी को ससुराल से विदा करा ले आया। 

अब यह सब भगवान बुध देव के प्रकोप से हो रहा है।“
मधुसूदन को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने भगवान बुधदेव से क्षमा मांगी और भविष्य में कभी ऐसा नहीं करने का प्रण लिया। मधुसूदन की प्रार्थना सुनकर बुधदेव ने उसे क्षमा कर दिया। तभी दूसरा व्यक्ति अचानक गायब हो गया।

राजा और दूसरे लोग इस चमत्कार को देख हैरान रह गए। वह व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि स्वयं बुधदेव थे। इस प्रकार बुधदेव ने मधुसूदन को उसकी गलती का एहसास कराया और भविष्य में ऐसी गलती ना करने का सबक भी दिया।