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कुण्डली के भावों में छिपा होता है मृत्यु का रहस्य

 

हर व्यक्ति को इस बात की जिज्ञासा होती है कि उसकी मृत्यु कैसे होगी?

 क्या मौत के समय कष्ट होगा या आसानी से आत्मा शरीर छोड़ देगी।

 किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली को देखकर उस व्यक्ति के रोग एवं उसकी मृत्यु के बारे में जाना जा सकता है। यह भी बताया जा सकता है कि उसकी मृत्यु किस रोग से होगी।

 ज्योतिष शास्त्र में प्रत्येक जन्मकुंडली में छठवाँ भाव रोग, आठवाँ भाव मृत्यु तथा बारहवाँ भाव शारीरिक व्यय व पीड़ा का माना जाता है। इन भावों के साथ ही इन भावों के स्वामी-ग्रहों की स्थितियों व उन पर पाप-ग्रहों की दृष्टियों व उनसे उनकी पुत्रियों आदि को भी देखना समीचीन होता है।

यही नहीं, स्वयं लग्न और लग्नेश भी संपूर्ण शरीर तथा मस्तिष्क का प्रतिनिधित्व करता है। लग्न में बैठे ग्रह भी व्याधि के कारक होते हैं। लग्नेश की अनिष्ट भाव में स्थिति भी रोग को दर्शाती है। इस पर पाप-ग्रहों की दृष्टि भी इसी तथ्य को प्रकट करती है। विभिन्न ग्रह विभिन्न अंग-प्रत्यंगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जैसे बुध त्वचा, मंगल रक्त, शनि स्नायु, सूर्य अस्थि, चंद्र मन आदि का। लग्न में इन ग्रहों की स्थिति उनसे संबंधित तत्व का रोग बताएगी और लग्नेश की स्थिति भी।


प्रत्येक कुंडली, लग्न, चंद्रराशि और नवमांश लग्न से देखी जाती है। इसका मिलान सूर्य की अवस्थिति को लग्न मानकर, काल पुरुष की कुंडली आदि से भी किया जाता है। छठवाँ भाव रोग का होने के कारण उसमें बैठे ग्रहों, उस पर व षष्टेश पर पाप ग्रहों की दृष्टियों व षष्टेश की स्थिति से प्रमुखतया रोग का निदान किया जाता है। इनके अतिरिक्त एकांतिक ग्रह भी विभिन्ना रोगों का द्योतक है। जन्मकुंडली में छठवाँ, आठवाँ और बारहवाँ भाव अनिष्टकारक भाव माने जाते हैं। इनमें बैठा हुआ ग्रह एकांतिक ग्रह कहा जाता है। यह ग्रह जिन भावों का प्रतिनिधित्व करता है, उससे संबंधित अंग रोग से पीडि़त होता है।


यही नहीं, वह जिस तत्व यथा बुध त्वचा, मंगल रक्त आदि जैसा कि ऊपर बताया गया उससे संबंधित रोग वह बताएगा। ज्योतिष शास्त्र में भावातभावम का सिद्धांत भी लागू होता है।


इसका आशय यह है कि छठवें से छठवाँ अर्थात एकादश भाव भी रोग का ही कहलाएगा। इसी भाँति आठवें से आठवाँ अर्थात तृतीय भाव भी मृत्यु का माना जाएगा और बारहवें से बारहवाँ अर्थात पुन: एकादश भाव शारीरिक व्यय अथवा पीड़ा का होगा। इस दृष्टि से भी ऊपर निर्दिष्ट कुंडलियों का मिलान करना चाहिए। इसके अतिरिक्त सुदर्शन से रोग देखा जाता है। यदि कोई ग्रह दो केंद्र भावों का स्वामी होता है तो वह अपनी शुभता खो देता है और स्वास्थ्य को हानि पहुँचाता है।


आठवाँ व बारहवाँ भाव मृत्यु और शारीरिक क्षय को प्रकट करता है, जैसा कि पूर्व में उल्लेख किया गया है। लग्न व लग्नेश आयु को दर्शाता है, इसकी नेष्ट स्थिति भी आयु के लिए घातक होती है। यहाँ पर एक और बात का ध्यान रखना उपयुक्त होगा। राहु व शनि जिस भाव व राशि में बैठा होता है, उसका स्वामी भी उनका प्रभाव लिए होता है। वह जिस भाव में बैठा होगा या जिस भाव पर वह अपनी दृष्टि डालेगा, उस पर राहु व शनि प्रभाव भी अवश्य आएगा। राहु मृत्युकारक ग्रह है तो शनि पृथकताकारक।


यह स्थिति भी मृत्युकारक होगी या उस अंग को पृथक करेगा। कभी-कभी यह बात ध्यान में नहीं रखने के कारण फलादेश गलत हो जाता है। गोचर ग्रहों के साथ-साथ महादशा व अंतर्दशा से भी फलादेश का मेल खाना अत्यंत आवश्यक होता है। जातक की जन्म कुंडली से उसके किसी भी रिश्तेदार के रोग व उसकी मृत्यु का पता लगाया जा सकता है।


मान लीजिए कि कर्क लग्न है, जिसका स्वामी चंद्र है जो जल व मन का प्रतिनिधित्व करता है। यह पाँचवें भाव में अवस्थित है। एकादश भाव बड़े भाई या बड़ी बहन का है। इसका स्वामी निश्चित तौर पर बड़ी बहन को दर्शाएगा स्त्री ग्रह होने के कारण। शनि भाग्य भाव में बैठकर तीसरी दृष्टि से इस भाव को देख रहा है। वह स्नायु का प्रतिनिधित्व करता है।


स्पष्ट है कि जातक की बड़ी बहन स्नायु से संबंधित रोग से ग्रस्त होगी। अब यदि ग्यारहवें भाव को लग्न मानें तो इससे छठवाँ भाव आठवाँ होगा जो बहन की मृत्यु का भाव है। इसे भी शनि दसवीं दृष्टि से देख रहा है। यही नहीं यहाँ पर केतु भी बैठा हुआ है, जो इस रोग को बढ़ा रहा है। बहन का लग्नेश शुक्र उसी के लग्न से बारहवाँ होकर राहु के साथ बैठा हुआ है।


राहु भी शनिवत होता है और स्नायु का प्रतिनिधित्व करता है। स्पष्ट है कि ग्रहों की सारी स्थितियाँ इस जन्म कुंडली में उसकी बहन का स्नायविक रोग और उससे उसकी मृत्यु को दर्शाता है। इसी भाँति प्रत्येक कुंडली का विश्लेषण करके उसके रोग व उसकी मृत्यु को जान सकते हैं। रोग की परिभाषा के अनुसार तत्संबंधी भावों, उनके स्वामियों, लग्न व लग्नेश स्थिति और उस पर पापी ग्रहों की युति व उनकी दृष्टियों से उस रोग व उससे जातक की मृत्यु को जाना जा सकता है।

*हर रोग हर लेती हैं शरद पूर्णिमा की चंद्र किरणें*


✍🏻वर्ष की सभी पूर्णिमा में आश्विन पूर्णिमा विशेष चमत्कारी मानी गई है। शरद पूर्णिमा का चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होता है। शास्त्रों के अनुसार इस तिथि पर चंद्रमा से निकलने वाली किरणों में सभी प्रकार के रोगों को हरने की क्षमता होती है। इसी आधार पर कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात आकाश से अमृत वर्षा होती है।


 डॉ अशोक श्रीश्रीमाल  के अनुसार शरद पूर्णिमा पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है। अंतरिक्ष के समस्त ग्रहों से निकलने वाली सकारात्मक ऊर्जा चंद्रकिरणों के माध्यम से पृथ्वी पर पड़ती हैं।


 पूर्णिमा की चांदनी में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखने के पीछे वैज्ञानिक तर्क यह है कि चंद्रमा के औषधीय गुणों से युक्त किरणें पड़ने से खीर भी अमृत के समान हो जाएगी। उसका सेवन करना स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होगा ।



*शरद पूर्णिमा तिथि:-* डॉ अशोक श्रीश्रीमाल के अनुसार आश्विन पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 30 अक्तूबर को सायं 5: 45 बजे होगा। इसका समापन अगले दिन 31 अक्तूबर को रात्रि 8:17 बजे होगा। इस दृष्टि से शरद पूर्णिमा 30 अक्तूबर को होगी। शरद पूर्णिमा पर भगवती लक्ष्मी के पूजन का विधान है। जिन स्थानों पर देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित होती है, वहां लक्ष्मी पूजन का विशेष आयोजन होता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा और कमला पूर्णिमा भी कहते हैं। 


डॉ अशोक श्रीश्रीमाल जी के अनुसार शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिता तक नित्य आकाशदीप जलाने और दीपदान करने से दुख दारिद्र्य का नाश होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा की निशा में ही भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना तट पर गोपियों के साथ महारास रचाया था। इसी दिन से कार्तिक मास के यम नियम, व्रत और दीपदान भी शुरू हो जाएंगे।

*कैसे करें शरद पूर्णिमा की पूजा: 10 काम की बातें, जानिए मंत्र एवं शुभ मुहूर्त*


आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस साल शरद पूर्णिमा 30 अक्टूबर शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी। धार्मिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा सभी पूर्णिमा तिथि में से सबसे महत्वपूर्ण पूर्णिमा तिथि मानी जाती है।


इस दिन धन वैभव और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए मां लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। इस पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा या कोजागरी लक्ष्मी पूजा भी कहते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन माता लक्ष्मी जी का अवतरण हुआ था। आइए जानते हैं शरद पूर्णिमा व्रत का मुहूर्त विधि और महत्व।


1. शरद पूर्णिमा के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान अवश्य करें।


2. इसके बाद एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं। उस पर माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। फिर मां लक्ष्मी को लाल पुष्प, नैवैद्य, इत्र, सुगंधित चीजें अर्पित करें।


3. आराध्य देव को सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाएं। आवाहन, आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत,


पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी और दक्षिणा आदि अर्पित कर पूजन करें।


4. यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद माता लक्ष्मी के मंत्र और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करें। मां लक्ष्मी की धूप व दीप से आरती करें।


5. फिर माता लक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं। ब्राह्मण को इस दिन खीर का दान अवश्य करें।


6. रात्रि के समय गाय के दूध से खीर बनाई जाती है और इसमें घी और चीनी मिलाई जाती है। आधी रात के समय भगवान भोग लगाएं।


7. रात्रि में चंद्रमा के आकाश के मध्य में स्थित होने पर चंद्र देव का पूजन करें। फिर खीर का नेवैद्य अर्पण करें।


8. रात को खीर से भरा बर्तन चांदनी में रखकर दूसरे दिन उसका भोजन करें। इसे प्रसाद के रूप में वितरित भी करें।


9. पूर्णिमा का व्रत करके कथा सुनें। कथा से पहले एक लोटे में जल और गिलास में गेहूं, पत्ते के दोने में रोली व चावल रखकर कलश की वंदना करें। फिर दक्षिणा चढ़ाएं।


10. इस दिन भगवान शिव-पार्वती और भगवान कार्तिकेय की भी पूजा की जाती है।


*पूर्णिमा व्रत शुभ मुहूर्त:*


शरद पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ: 30 अक्टूबर 2020 को शाम 07 बजकर 45 मिनट

शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रोदय: 30 अक्टूबर 2020 को 7 बजकर 12 मिनट

शरद पूर्णिमा तिथि समाप्त: 31 अक्टूबर 2020 को रात्रि 8 बजकर 18 मिनट


*मंत्र :*

*ॐ चं चंद्रमस्यै नम:*


*दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव सम्भवम ।*

*नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।।*


डॉ अशोक श्रीश्रीमाल

🌝शरद पूर्णिमा विशेष

 


अश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा कहलाती है शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है। इस बार शरद पूर्णिमा का पर्व 30 अक्टूबर शुक्रवार को मनाया जाएगा इस व्रत में रात्रि के प्रथम प्रहर अथवा सम्पूर्ण निशीथ व्यापनी पूर्णिमा ग्रहण करना चाहिए जो पूर्णिमा रात के समय रहे वहीं ग्रहण करना चाहिए। पूर्णिमा तिथि अक्टूबर 30 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 45 मिनट से आरंभ हो जाएगी। अगले दिन 31 अक्टूबर रात 8 बजकर 20 मिनट पर पूर्णिमा तिथि समाप्त होगी। 

30 अक्टूबर को पूर्णिमा तिथि आरंभ होने के कारण मध्यरात्रि में पूर्णिमा तिथि शुक्रवार के दिन रहने के कारण शरद पूर्णिमा व्रत शुक्रवार के दिन ही किया जाएगा। उदया तिथि के अनुसार पूर्णिमा तिथि 31 अक्टूबर, शनिवार को रहेगी जिसके फलस्वरूप स्नान दान व्रत एवं धार्मिक अनुष्ठान इसी दिन संपन्न होंगे। इस बार शरद पूर्णिमा पर अमृतसिद्धि योग बन रहा है। 30 अक्टूबर 2020 शु्क्रवार के दिन मध्यरात्रि में अश्विनी नक्षत्र रहेगा। साथ ही इस दिन 27 योगों के अंतर्गत आने वाला वज्रयोग, वाणिज्य / विशिष्ट करण तथा मेष राशि का चंद्रमा रहेगा। ज्योतिष के अनुसार, शरद पूर्णिमा को मोह रात्रि कहा जाता है।


 शरद पूर्णिमा के व्रत को कोजागार या कौमुदी व्रत भी कहते हैं क्योंकि लक्ष्मी जी को जागृति करने के कारण इस व्रत का नाम कोजागार पड़ा इस दिन लक्ष्मी नारायण महालक्ष्मी एवं तुलसी का पूजन किया जाता है।


इस दिन श्री कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचाया था। साथ ही माना जाता है कि इस दिन मां लक्ष्मी रात के समय भ्रमण में निकलती है यह जानने के लिए कि कौन जाग रहा है और कौन सो रहा है। उसी के अनुसार मां लक्ष्मी उनके घर पर ठहरती है। इसीलिए इस दिन सभी लोग जागते है । जिससे कि मां की कृपा उनपर बरसे और उनके घर से कभी भी लक्ष्मी न जाएं।


इसलिए इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा ही शरद पूर्णिमा पर्व मनाया जाता है। ज्‍योतिष के अनुसार,ऐसा कई वर्षों में पहली बार हो रहा है जब शरद पूर्णिमा और गुरुवार का संयोग बना है। इस दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा भी कहते हैं। 


पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दी धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। मान्यता है इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।


शरद पूर्णिमा विधान 

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इस दिन मनुष्य विधिपूर्वक स्नान करके उपवास रखे और ब्रह्मचर्य भाव से रहे। इस दिन ताँबे अथवा मिट्टी के कलश पर वस्त्र से ढँकी हुई स्वर्णमयी लक्ष्मी की प्रतिमा को स्थापित करके भिन्न-भिन्न उपचारों से उनकी पूजा करें, तदनंतर सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर सोने, चाँदी अथवा मिट्टी के घी से भरे हुए 100 दीपक जलाए। इसके बाद घी मिश्रित खीर तैयार करे और बहुत-से पात्रों में डालकर उसे चन्द्रमा की चाँदनी में रखें। जब एक प्रहर (3 घंटे) बीत जाएँ, तब लक्ष्मीजी को सारी खीर अर्पण करें। तत्पश्चात भक्तिपूर्वक सात्विक ब्राह्मणों को इस प्रसाद रूपी खीर का भोजन कराएँ और उनके साथ ही मांगलिक गीत गाकर तथा मंगलमय कार्य करते हुए रात्रि जागरण करें। तदनंतर अरुणोदय काल में स्नान करके लक्ष्मीजी की वह स्वर्णमयी प्रतिमा आचार्य को अर्पित करें। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी।


शरद पूर्णिमा पर खीर खाने का महत्व

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शरद पूर्णिमा की रात का अगर मनोवैज्ञानिक पक्ष देखा जाए तो यही वह समय होता है जब मौसम में परिवर्तन की शुरूआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी।


शरद पूर्णिमा व्रत कथा 

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एक साहुकार के दो पुत्रियाँ थी। दोनो पुत्रियाँ पुर्णिमा का व्रत रखती थी। परन्तु बडी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधुरा व्रत करती थी। परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की सन्तान पैदा ही मर जाती थी। उसने पंडितो से इसका कारण पूछा तो उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पुरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है।


उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। उसके लडका हुआ परन्तु शीघ्र ही मर गया। उसने लडके को पीढे पर लिटाकर ऊपर से पकडा ढक दिया। फिर बडी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पीढा दे दिया। बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया। बच्चा घाघरा छुते ही रोने लगा। बडी बहन बोली-” तु मुझे कंलक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता।“ तब छोटी बहन बोली, ” यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। “उसके बाद नगर में उसने पुर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया। 


इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।


शरद पूर्णिमा की रात को क्या करें, क्या न करें ?

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दशहरे से शरद पूनम तक चन्द्रमा की चाँदनी में विशेष हितकारी रस, हितकारी किरणें होती हैं । इन दिनों चन्द्रमा की चाँदनी का लाभ उठाना, जिससे वर्षभर आप स्वस्थ और प्रसन्न रहें । नेत्रज्योति बढ़ाने के लिए दशहरे से शरद पूर्णिमा तक प्रतिदिन रात्रि में 15 से 20 मिनट तक चन्द्रमा के ऊपर त्राटक करें। 


अश्विनी कुमार देवताओं के वैद्य हैं। जो भी इन्द्रियाँ शिथिल हो गयी हों, उनको पुष्ट करने के लिए चन्द्रमा की चाँदनी में खीर रखना और भगवान को भोग लगाकर अश्विनी कुमारों से प्रार्थना करना कि ‘हमारी इन्द्रियों का बल-ओज बढ़ायें।’ फिर वह खीर खा लेना चाहिये।


इस रात सूई में धागा पिरोने का अभ्यास करने से नेत्रज्योति बढ़ती है । 


शरद पूर्णिमा दमे की बीमारी वालों के लिए वरदान का दिन है।


चन्द्रमा की चाँदनी गर्भवती महिला की नाभि पर पड़े तो गर्भ पुष्ट होता है। शरद पूनम की चाँदनी का अपना महत्त्व है लेकिन बारहों महीने चन्द्रमा की चाँदनी गर्भ को और औषधियों को पुष्ट करती है। 

अमावस्या और पूर्णिमा को चन्द्रमा के विशेष प्रभाव से समुद्र में ज्वार-भाटा आता है। जब चन्द्रमा इतने बड़े दिगम्बर समुद्र में उथल-पुथल कर विशेष कम्पायमान कर देता है तो हमारे शरीर में जो जलीय अंश है, सप्तधातुएँ हैं, सप्त रंग हैं, उन पर भी चन्द्रमा का प्रभाव पड़ता है । इन दिनों में अगर काम-विकार भोगा तो विकलांग संतान अथवा जानलेवा बीमारी हो जाती है और यदि उपवास, व्रत तथा सत्संग किया तो तन तंदुरुस्त, मन प्रसन्न और बुद्धि में बुद्धिदाता का प्रकाश आता है ।


सुख समृद्धि के लिए राशि अनुसार करे ये उपाय

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मेष🐐

शरद पूर्णिमा पर मेष राशि के लोग कन्याओं को खीर खिलाएं और चावल को दूध में धोकर बहते पानी में बहाएं। ऐसा करने से आपके सारे कष्ट दूर हो सकते हैं।


वृष🐂

 इस राशि में चंद्रमा उच्च का होता है। वृष राशि शुक्र की राशि है और राशि स्वामी शुक्र प्रसन्न होने पर भौतिक सुख-सुविधाएं प्रदान करते हैं। शुक्र देवता को प्रसन्न करने के लिए इस राशि के लोग दही और गाय का घी मंदिर में दान करें।


मिथुन💏

 इस राशि का स्वामी बुध, चंद्र के साथ मिल कर आपकी व्यापारिक एवं कार्य क्षेत्र के निर्णयों को प्रभावित करता है। उन्नति के लिए आप दूध और चावल का दान करें तो उत्तम रहेगा।


कर्क🦀

आपके मन का स्वामी चंद्रमा है, जो कि आपका राशि स्वामी भी है। इसलिए आपको तनाव मुक्त और प्रसन्न रहने के लिए मिश्री मिला हुआ दूध मंदिर में दान देना चाहिए।


सिंह🐅

आपका राशि का स्वामी सूर्य है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर धन प्राप्ति के लिए मंदिर में गुड़ का दान करें तो आपकी आर्थिक स्थिति में परिवर्तन हो सकता है।


कन्या👩

इस पवित्र पर्व पर आपको अपनी राशि के अनुसार 3 से 10 वर्ष तक की कन्याओं को भोजन में खीर खिलाना विशेष लाभदाई रहेगा।


तुला⚖

इस राशि पर शुक्र का विशेष प्रभाव होता है। इस राशि के लोग धन और ऐश्वर्य के लिए धर्म स्थानों यानी मंदिरों पर दूध, चावल व शुद्ध घी का दान दें।


वृश्चिक🦂

इस राशि में चंद्रमा नीच का होता है। सुख-शांति और संपन्नता के लिए इस राशि के लोग अपने राशि स्वामी मंगल देव से संबंधित वस्तुओं, कन्याओं को दूध व चांदी का दान दें।


धनु🏹

इस राशि का स्वामी गुरु है। इस समय गुरु उच्च राशि में है और गुरु की नौवीं दृष्टि चंद्रमा पर रहेगी। इसलिए इस राशि वालों को शरद पूर्णिमा के अवसर पर किए गए दान का पूरा फल मिलेगा। चने की दाल पीले कपड़े में रख कर मंदिर में दान दें।


मकर🐊

इस राशि का स्वामी शनि है। गुरु की सातवी दृष्टि आपकी राशि पर है जो कि शुभ है। आप बहते पानी में चावल बहाएं। इस उपाय से आपकी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।


कुंभ🍯

इस राशि के लोगों का राशि स्वामी शनि है। इसलिए इस पर्व पर शनि के उपाय करें तो विशेष लाभ मिलेगा। आप दृष्टिहीनों को भोजन करवाएं।


मीन🐳

शरद पूर्णिमा के अवसर पर आपकी राशि में पूर्ण चंद्रोदय होगा। इसलिए आप सुख, ऐश्वर्य और धन की प्राप्ति के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।

डॉ अशोक श्रीश्रीमाल 

9823019414


🌹गुरुवार को घर में क्यों नहीं लगाएँ पोंछा🌹


           किसी भी जन्मकुंडली में दूसरा और ग्यारहवां भाव धन के स्थान होते हैं। गुरु ग्रह इन दोनों ही स्थानों का कारक ग्रह होता है। गुरुवार को गुरु ग्रह को कमजोर किए जाने वाले काम करने से धन की वृद्धि रुक जाती है। धन लाभ की जो भी स्थितियां बन रही हों। उन सभी में रुकावट आने लगती है। सिर धोना, भारी कपड़े धोना, बाल कटवाना तथा शेविंग करवाना, शरीर के बालों को साफ करना, फेशियल करना, नाखून काटना, घर से मकड़ी के जाले साफ करना, घर के उन कोनों की सफाई करना जिन कोनों की रोज सफाई नहीं की जा सकती हो या पोंछा लगाना ये सभी काम गुरुवार को करना धन हानि का संकेत हैं। तरक्की को कम करने का संकेत हैं।गुरुवार धर्म का दिन होता है तथा ब्रह्मांड में स्थित नौ ग्रहों में से गुरु वजन में सबसे भारी ग्रह है। 

         यही कारण है कि इस दिन हर वो काम जिससे कि शरीर या घर में हल्कापन आता हो। ऐसे कामों को करने से मना किया जाता है क्योंकि ऐसा करने से गुरु ग्रह हल्का होता है। यानी कि गुरु के प्रभाव में आने वाले कारक तत्वों का प्रभाव हल्का हो जाता है। गुरु धर्म व शिक्षा का कारक ग्रह है। गुरु ग्रह को कमजोर करने से शिक्षा में असफलता मिलती है। साथ ही धार्मिक कार्यों में झुकाव कम होता चला जाता है। शास्त्रों में गुरुवार को महिलाओं को बाल धोने से इसलिए मनाही की गई है। क्योंकि महिलाओं की जन्मकुंडली में बृहस्पति पति का कारक होता है। साथ ही बृहस्पति ही संतान का कारक होता है। इस प्रकार अकेला बृहस्पति ग्रह संतान और पति दोनों के जीवन को बहुत प्रभावित करता है।       

          बृहस्पतिवार को सिर धोना बृहस्पति को कमजोर बनाता है जिससे कि बृहस्पति के शुभ प्रभाव में कमी होती है। इसी कारण से इस दिन बाल भी नहीं कटवाना चाहिए जिसका असर संतान और पति के जीवन पर पड़ता है। उनकी उन्नति बाधित होती है।जिस प्रकार से बृहस्पति का प्रभाव शरीर पर रहता है। उसी प्रकार से घर पर भी बृहस्पति का प्रभाव उतना ही अधिक गहरा होता है। 

         वास्तु अनुसार घर में ईशान कोण का स्वामी गुरु होता है। ईशान कोण का संबंध परिवार के नन्हे सदस्यों यानी कि बच्चों से होता है। साथ ही घर के पुत्र संतान का संबंध भी इसी कोण से होता है। ईशान कोण धर्म और शिक्षा की दिशा है। घर में अधिक वजन वाले कपड़ों को धोना, पुराना कबाड़ घर से बाहर निकालना, घर को धोना या पोछा लगाना। घर के ईशान कोण को कमजोर करता है। उससे घर के बच्चों, पुत्रों, घर के सदस्यों की शिक्षा, धर्म आदि पर शुभ प्रभाव में कमी आती है।

            जन्मकुंडली में गुरु ग्रह के प्रबल होने से उन्नति के रास्ते आसानी से खुलते हैं। यदि गुरु ग्रह को कमजोर करने वाले कार्य किए जाए तो प्रमोशन होने में रुकावटें आती है।गुरुवार को नहीं करना चाहिए नेल कटिंग और शेविंग भी। शास्त्रों में गुरु ग्रह को जीव कहा गया है। जीव मतलब जीवन। जीवन मतलब आयु। गुरुवार को नेल कटिंग और शेविंग करना आदि गुरु ग्रह को कमजोर करता है और जिससे जीवन शक्ति काफ़ी दुष्प्रभावित होती है। उम्र में से भी दिन कम करती है।


*आर्थिक तंगी दूर करने के लिए पीपल के पत्तों का उपाय*

 


शास्त्रों के अनुसार हनुमानजी शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवी-देवताओं में से एक हैं। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस के अनुसार माता सीता द्वारा पवनपुत्र हनुमानजी को अमरता का वरदान दिया गया है। इसी वरदान के प्रभाव से इन्हें भी अष्टचिरंजीवी में शामिल किया जाता है। कलयुग में हनुमानजी भक्तों की सभी मनोकामनाएं तुरंत ही पूर्ण करते हैं।


बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। इन्हीं उपायों में से एक उपाय यहां बताया जा रहा है। इस उपाय को विधिवत किया जाए तो बहुत जल्दी सकारात्मक फल प्राप्त होते हैं। यह उपाय पीपल के पत्तों से किया जाता है।


श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमानजी की कृपा प्राप्त होते ही भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते हैं। पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं। कोई रोग हो तो वह भी नष्ट हो जाता है। इसके साथ ही यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह दोष हो तो पवनपुत्र की पूजा से वह भी दूर हो जाता है। हनुमानजी की पूजा में पवित्र का पूरा ध्यान रखना चाहिए।


यदि कोई व्यक्ति पैसों की तंगी का सामना करना रहा है तो उसे प्रति मंगलवार और शनिवार को पीपल के 11 पत्तों का यह उपाय अपनाना चाहिए।


उपाय इस प्रकार है👉 प्रत्येक मंगलवार और शनिवार को ब्रह्म मुहूर्त में उठें। इसके बाद नित्य कर्मों से निवृत्त होकर किसी पीपल के पेड़ से 11 पत्ते तोड़ लें। ध्यान रखें पत्ते पूरे होने चाहिए, कहीं से टूटे या खंडित नहीं होने चाहिए। इन 11 पत्तों पर स्वच्छ जल में कुमकुम या अष्टगंध या चंदन मिलाकर इससे पूरे पत्ते पर आगे पीछे सभी तरफ अधिक से अधिक संख्या में श्रीराम का नाम लिखें। नाम लिखते समय हनुमान चालीसा का पाठ अवश्य करते रहें।

 

जब सभी पत्तों पर श्रीराम नाम लिख लें, उसके बाद राम नाम लिखे हुए इन पत्तों की एक माला बनाएं। इस माला को किसी भी हनुमानजी के मंदिर जाकर वहां बजरंगबली को अर्पित करें। इस प्रकार यह उपाय करते रहें। कुछ समय में सकारात्मक परिणाम प्राप्त होंगे।


ध्यान रखें उपाय करने वाला भक्त किसी भी प्रकार के अधार्मिक कार्य न करें। अन्यथा इस उपाय का प्रभाव निष्फल हो जाएगा। उचित लाभ प्राप्त नहीं हो सकेगा। साथ ही अपने कार्य और कर्तव्य के प्रति ईमानदार रहें।


हनुमान जी को प्रसन्न करने के अन्य उपाय!

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👉 किसी भी हनुमान मंदिर जाएं और अपने साथ नारियल लेकर जाएं। मंदिर में नारियल को अपने सिर पर सात बार वार लें। इसके बाद यह नारियल हनुमानजी के सामने फोड़ दें। इस उपाय से आपकी सभी बाधाएं दूर हो जाएंगी।


👉 शनिवार को हनुमानजी के मंदिर में 1 नारियल पर स्वस्तिक बनाएं और हनुमानजी को अर्पित करें। हनुमान चालीसा का पाठ करें।


👉 हनुमानजी को सिंदूर और तेल अर्पित करें। जिस प्रकार विवाहित स्त्रियां अपने पति या स्वामी की लंबी उम्र के लिए मांग में सिंदूर लगाती हैं, ठीक उसी प्रकार हनुमानजी भी अपने स्वामी श्रीराम के लिए पूरे शरीर पर सिंदूर लगाते हैं। जो भी व्यक्ति शनिवार को हनुमानजी को सिंदूर अर्पित करता है उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं।


👉 अपनी श्रद्धा के अनुसार किसी हनुमान मंदिर में बजरंग बली की प्रतिमा पर चोला चढ़वाएं। ऐसा करने पर आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।


👉 हनुमानजी के सामने शनिवार की रात को चौमुखा दीपक लगाएं। यह एक बहुत ही छोटा लेकिन चमत्कारी उपाय है। ऐसा नियमित रूप से करने पर आपके घर-परिवार की सभी परेशानियां समाप्त हो जाती हैं।


 👉 किसी पीपल पेड़ को जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें। इसके बाद पीपल के नीचे बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करें।


उपाय करते समय धैर्य का परिचय दें कोई भी उपाय तुरंत लाभ नही दे सकता पहले प्रारब्ध कमजोर करेगा उसके बाद ही लाभ होगा।


🤚*विद्या रेखा*

 


      हमारे हाथ में कुछ ऐसी रेखाएं होती हैं, जो मुख्य रेखाएं तो नहीं होतीं परंतु वे महत्वपूर्ण रेखाएं होती हैं। 


यह रेखाएं हस्त में स्वतंत्र रूप से किसी भी रेखा की सहायक बनकर अपना प्रभाव बनाए रखती हैं। यह रेखाएं प्रायः कुछ के हाथों में नहीं होतीं। जैसे कि : 


* विद्या रेखा मध्यमा तथा अनामिका अंगुलियों के बीच में पाई जाती है, जो सूर्य पर्वत क्षेत्र की ओर झुकती हुई खड़ी होती है। 

* जिन व्यक्तियों के हाथ में ऐसी रेखा होती है, वे निर्धन (साधारण) घर में जन्म लेकर भी श्रेष्ठ विद्या उपार्जित करने में सफल होते हैं। 

* ऐसे व्यक्ति ज्ञानवान और बुद्धिमान रहते हैं। 

* सभ्य समाज में उनका आदर होता है तथा अपनी बुद्धि के बल पर पूर्ण सफलता प्राप्त करने में सक्षम होते हैं।


🤱*संतान रेखा पुत्र पुत्री रेखा*



     वह रेखाऐं जो विवाह रेखा के ऊपर बुध पर्वत पर तथा अंगूठे के नीचे पाई जाने वाली रेखाएं संतान से संबंधित रेखाएं होती हैं। परन्तु इस रेखा के साथ अन्य रेखाओं का एवं हाथ की विशेषताओं का अध्ययन करके ही संतान संबंधित भविष्यवाणी की जा सकती है।

यदि शुक्र पर्वत पूर्ण विकसित और जीवन रेखा घुमावदार हो तो यह संतान प्राप्ति के शुभ संकेत को दर्शाती है। एक महत्वपूर्ण बात यह कि व्यक्ति को कितनी संतानें होंगी, वह उसे कितना सुख देगी,  संतान स्वस्थ होगी या अस्वस्थ, पुत्र होगा या पुत्री, यह सब बातें रेखा की मजबूत स्थिति और विभिन्न प्रकार के पर्वतों पर इस रेखा के स्पर्श एवं इसकी स्थिति द्वारा ज्ञात हो सकती हैं।


रेखा के विभिन्न प्रकार के आकार और स्थिति के अनुसार संतान के विषय मे संकेत नीचे दिये जा रहे है-


हस्त संजीवन पुस्तक के अनुसार मणिबंध से लेकर जीवन रेखा तक रेखाओं की गणना द्वारा संतान की संख्या को प्राप्त किया जा सकता है।

यदि  मणिबंध की गणना सम संख्या मे आये तो प्रथम संतान कन्या होगी और विषम संख्या मे आये तो प्रथम संतान पुत्र होगा।

विवाह रेखा के ऊपर और हथेली के बाहर की ओर पहली रेखा प्रथम संतान को और दूसरी रेखा द्वितीय संतान को दर्शाती है, यह क्रम इसी प्रकार चलता जाता है।

यदि  सीधी रेखा हो तो पुत्र संतान और मुडी़ या झुकी हुई रेखा हो तो कन्या संतान होने को दर्शाती है।

यदि प्रथम मणिबंध रेखा अधिक झुकाव के साथ हथेली की ओर प्रविष्ठ हो रही हो तो व्यक्ति को संतान संबंधी दुख प्राप्त कर सकता है.

संतान रेखाएं पुरुषों के हाथों से ज्यादा महिलाओं के हाथ में अधिक स्पष्ट होती हैं।

यदि संतान रेखाएं स्पष्ट हों तो संतान निरोग और स्वस्थ होगी परन्तु इसके विपरीत यदि रेखाएं धुंधली और लहराती हुई हों तो कमजोर संतान प्राप्त होती है।

संतान रेखा के पहले हिस्से मे द्वीप हो तो प्रारंभिक अवस्था मे संतान का स्वास्थ्य नाज़ुक होगा और यदि द्वीप के आगे की रेखा साफ और स्पष्ट हो तो आगे चलकर संतान का स्वास्थ्य मजबूत होगा।

संतान रेखाओं मे से यदि कोई एक रेखा अधिक लंबी और स्पष्ट हो तो माता पिता के लिये सभी संतनों की तुलना में कोई एक संतान अधिक महत्वपूर्ण होगी।

यदि  संतान रेखाओं मे क्रास बना हुआ हो या रेखाएं टूटी हुई हों तो गर्भपात या संतान की मृत्यु  हो सकती है।

यदि जीवन रेखा का घेरा शुक्र पर्वत को छोटा करे तो ऐसे व्यक्ति कि संतान के लिये यह अशुभ संकेत है।

यदि संतान रेखाएं पुरुष के हाथ मे साफ और स्पष्ट हो तो ऐसे व्यक्ति को संतान से अधिक मोह और आसक्ति होगी।


🤚हस्तरेखा शास्त्र से जाने अपनी हथेली का राजयोग

 


आज हम आपको बताएँगे की कैसे आप भी जान सकते है है हस्तरेखा शास्त्र से अपनी हथेली का राजयोग, राजयोग यानी सभी सुख-सुविधाएं, मान-सम्मान और ऐश्वर्य देने वाला योग। 


ये योग जिन लोगों की किस्मत में होता है, वे किसी राजा के समान जीवन व्यतीत करते हैं। इन योगों की जानकारी हस्तरेखा और सामुद्रिक शास्त्र से मिल सकती है। 


यहां जानिए किसी व्यक्ति के भाग्य में राजयोग है या नहीं, उसके संकेत…


तो आइये जानते है आपके हाथ में है राजयोग या नहीं..


1. जिस व्यक्ति की हथेली के मध्य भाग में घोड़ा, घड़ा, पेड़ या स्तम्भ का चिह्न हो, वह राजसुख करता है। ऐसे लोग किसी नगरसेठ के समान धनी होते हैं।


2. जिस व्यक्ति का ललाट (माथा) चौड़ा और विशाल हो, नेत्र सुन्दर, मस्तक गोल और भुजाएं लंबी होती हैं, वह व्यक्ति भी राजसुख प्राप्त करता है।


3. जिस व्यक्ति के हाथ में धनुष, चक्र, माला, कमल, ध्वजा, रथ, आसन अथवा चतुष्कोण हो, उसे महालक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।


4. यदि अंगूठे में यव का चिह्न हो, साथ ही मछली, छाता, अंकुश, वीणा, सरोवर या हाथी समान चिह्न हो तो वह व्यक्ति यश्स्वी और अपार धन का स्वामी होता है।


5. जिस व्यक्ति के हाथ में तलवार, पहाड़ या हल का चिह्न हो, उसके पास धन की कमी नहीं होती है।


6. जिन लोगों के हाथ की सूर्य रेखा, मस्तक रेखा से मिली हुई हो और मस्तक रेखा स्पष्ट सीधी होकर गुरु की ओर झुकने से चतुष्कोण का निर्माण होता हो, वह मंत्री समान सुख प्राप्त करता है।


7. जिसके हाथ में गुरु, सूर्य पर्वत उच्च हो, शनि और बुध रेखा पुष्ट एवं स्पष्ट और सीधी हो, वह शासन में उच्च पद प्राप्त कर सकता है।


8. यदि व्यक्ति के हाथ में शनि पर्वत पर त्रिशूल का चिह्न हो, चन्द्र रेखा का भाग्य रेखा से संबंध हो या भाग्य रेखा हथेली के मध्य से प्रारंभ हो और उसकी एक शाखा गुरु पर्वत पर और एक सूर्य पर्वत पर जाए तो व्यक्ति राज्याधिकारी होता है।


9. जिन लोगों के हाथ में गुरु और मंगल पर्वत उच्च हो, मस्तिष्क रेखा द्विजिव्ही यानी दो शाखाओं वाली हो या बुध की उंगली नुकीली हो और लम्बी हो,साथ ही नाखून चमकदार हो तो व्यक्ति राजदूत होता है।


10. जिस व्यक्ति के बाएं हाथ की तर्जनी (इंडेक्स फिंगर) एवं कनिष्ठिका उंगली (लिटिल फिंगर) की अपेक्षा दाहिने हाथ की तर्जनी एवं कनिष्ठि का मोटी और बड़ी हो,


 मंगल पर्वत अधिक ऊंचा हो और सूर्य रेखा प्रबल हो तो व्यक्ति कलेक्टर या कमीश्नर बन सकता है।


रेखाओं और पर्वतों के हिन्दी नाम और इंग्लिश नाम ...

जीवन रेखा- Life Line

हृदय रेखा- Heart Line

मस्तिष्क रेखा- Head Line

सूर्य रेखा- Sun Line or Fame Line

भाग्य रेखा- Fate Line

शुक्र पर्वत- Venus Mount

चंद्र पर्वत- Moon Mount

गुरु पर्वत- Jupiter Mount

मंगल पर्वत- Mars Mount

शनि पर्वत- Saturn Mount

सूर्य पर्वत- Sun Mount

बुध पर्वत- Mercury Mount

 

 यदि जातक की स्वास्थ्य रेखा घिसी हुई-सी छिन्न-भिन्न हो एवं चन्द्र स्थान से एक रेखा निकलकर आयु रेखा को काटती जाए तो गठिया रोग होता है।

 

 यदि चन्द्र पर्वत पर नक्षत्र चिह्न हो और चन्द्र के नीचे का भाग उच्च होकर अनेक रेखाओं से कटा हो एवं उस पर भी नक्षत्र चिह्न हो तो जातक को जलोदर रोग होता है।

चन्द्र पर्वत अधिक उन्नत हो तो उसे एसिडिटी रोग होता है।

 

 यदि जातक के नाखून बांसुरी आकार के हों एवं हथेली की त्वचा कोमल हो तो जातक को त्वचा रोग होता है।


🛫तिल के आधार पर* *विदेश_यात्रा_के_योग*


✍️हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार हथेली की कुछ विशेष रेखाएं दर्शाती हैं कि आपके लिए विदेश यात्रा के योग हैं या नहीं। साथ ही, शरीर पर कुछ खास अंगों के तिल भी इस संबंध में संभावनाएं व्यक्त करते हैं। जानिए विदेश यात्रा के योग बताने वाले तिल निशान कौन-कौन से हैं...


👉दाहिनी भौंह के पास या दाहिनी पसली के नीचे लाल तिल हो तो व्यक्ति व्यापार में काफी उन्नति करता है और 36 वर्ष की आयु के बाद विदेश यात्रा कर धन अर्जित करता है।


👉यदि किसी व्यक्ति के मस्तिष्क यानी माथे पर तिल है तो व्यक्ति को मान-सम्मान मिलता है। 


👉यदि माथे की दाहिनी ओर तिल हो तो व्यक्ति को धन का अभाव नहीं रहता है।


👉 यदि तिल दोनों भौंहों के बीच है तो व्यक्ति कई बार विदेश यात्रा करता है।


👉यदि किसी व्यक्ति के पैर के तलवे पर या अंगूठे पर तिल हो तो व्यक्ति विदेश जाने के योग बनते हैं।


👉सीधी और स्पष्ट नाक पर चेचक का निशान हो तो व्यक्ति देश-विदेश में ख्याति प्राप्त करता है।


                         

कल क्या होगा ?? आज ही जान ले

 विजयादशमी की आप सभी को हार्दिक बधाई शुभकामनाएं।।


 विजयादशमी के दिन शमी की की जाती है शमी की जड़ को पूजन करके अपने घर पर लाकर के रखा जाता है पूजा स्थान पर या धन  भंडार में रखा जाता।


🚫 विशेष चेतावनी🚫


 बंधुओं सन  2021 के नवरात्रि तक महामारी जो डाक्टरों के समझ में नहीं आएगी ऐसी बीमारियां फिर भी रहेगी सन 2021 की अश्विन शुद्ध शुक्ल पक्ष की नवरात्रि तक।


 कई प्रकार की महामारी आयेगी जो डाक्टरों की समझ से परे रहेगी ऐसी बीमारियां पैदा होगी।


मध्य प्रदेश में होने वाले 28  विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की सरकार वर्तमान में है बनी रहेगी।


 एक दो मिनिस्टरो को छोड़कर के सभी मिनिस्टर विजय होंगे।

 

♦ बिहार में नीतीश बाबू को झटका लग सकता है या यूं कहें कि उनकी सरकार नहीं बन सकती।

♦ मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री जरूर बदला जा सकता है परंतु सरकार भाजपा की रहेगा।

♦ शिवराज जी को केंद्र में लिया जा सकता है।♦ बिहार में भारतीय जनता पार्टी को सीटें अच्छी मिलेगी।

♦ लालटेन भी चमकेगा।

♦ विश्व का युद्ध हो सकता है करीब 50 देशों से।

♦ यूपी के अंदर कानून व्यवस्था संभालने में राज्य सरकार नाकाम रहेगी।

♦ वर्तमान में समय से पहले कई देशों में बर्फ गिरेगी भारी तादाद में गिरे जहां नहीं गिरती ऐसे देशों में भी बर्फ गिरेगी।

♦ कई जगह बेमौसम बारिश के कारण बाढ़ की स्थिति बहुत खराब रहेगी अचानक बाढ़ आएगी।

♦ विश्व की मंदी खत्म नहीं होगी।

♦ विश्व की सामरिक तभी गिरेगी बिगड़ेगी।

डॉ अशोक श्रीश्रीमाल कहते हैं इस वर्ष भूकंप भी कई देशों में आएंगे।

♦ जिन क्षेत्रों में ज्वालामुखी फटते हैं वहां ज्वालामुखी फट ते रहेंगे लावा उगलता रहेगा।

🙏*गुरुचांडाल भंग योग*




गुरु के साथ राहु या केतु की युति होने से गुरुचण्डाल योग बनता है।अब यदि गुरु कुंडली में योगकारक होकर केंद्र त्रिकोण में बली होकर राहु केतु के साथ बेठा हो और किसी अन्य शुभ ग्रह का प्रभाव भी गुरु चांडाल योग पर हो तो गुरु चांडाल योग की अशुभता खत्म होकर इस योग के अच्छे फल मिलते है। जैसे गुरु कन्या लग्न में चतुर्थेश सप्तमेश केंद्रों का स्वामी होकर केंद्र में ही या त्रिकोण में बली होकर राहु या केतु के साथ गुरु चांडाल योग बना रहा हो साथ ही इसी योग पर शुक्र जो नवम भाव साथ ही द्वितीय भाव का स्वामी होकर व् नेसर्गिक रूप से भी शुभ ग्रह है अगर गुरु चण्डाल योग से सम्बन्ध बना ले तो उस योग की अशुभता नष्ट होकर शुभ फल देने की शक्ति बढ़ जायेगी कारण क्योंकि गुरु केंद्र का स्वामी है तो शुक्र त्रिकोण का इन दोनों के साथ से राजयोग बनेगा जिस कारण अगर ऐसी स्थिति में राहु केतु भी गुरु शुक्र से सम्बन्ध बनाते है तो खुद राजयोग कारक होकर शुभ फल देने वाले बन जायेगे और इसमें लग्नेश बुध का सम्बन्ध और बन जाए तो यह योग तीन शुभ ग्रहो के साथ होने से बेहद शुभ राजयोग बनेगा और राहु केतु गुरु से बनने वाला गुरु चांडाल योग भंग होकर राजयोग बन जायेगा और गुरु चांडाल योग का कोई खास अशुभ प्रभाव नही होगा।इस तरह अशुभ योग लग्न अनुसार जितने अच्छी शुभ स्थिति में बनते है उनकी अशुभता कम होकर अशुभ देने की क्षमता नष्ट होकर सम या शुभ फल देने वाली हो जाती है।

🪐*शुक्र ग्रह का कन्या राशि में प्रवेश, जानिये सभी १२ राशियों का फलकथन*

 


✍🏻नवग्रहों में छठे ग्रह शुक्र, जिनको वृषभ और तुला राशि के स्वामी माना गया है। डॉ अशोक श्रीश्रीमाल के अनुसार, शुक्र २३ अक्टूबर को सिंह राशि से निकलकर कन्या राशि में गोचर करने वाले हैं। शुक्र इस राशि में २५ दिन तक रहेंगे, फिर वह कन्या राशि से निकलकर तुला राशि में प्रवेश करेंगे। शुक्र को भोग-विलास, प्रेम और भौतिक सुखों का कारक माना जाता है। शुक्र के गोचर से सभी राशियां प्रभावित होंगी। कुछ राशियों की धन संबंधित समस्या खत्म होगी तो किसी के जीवन में लव लाइफ में नया मोड आएगा। वहीं कुछ राशियों के जीवन में नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल सकता है.......

*१:-मेष राशि:-* शुक्र आपकी राशि से छठवें स्थान पर गोचर करने वाला है। इस दौरान आपको विरोधियों और कानूनी विवादों का सामना करना पड़ सकता है। कार्यक्षेत्र में शत्रुओं की संख्या में इजाफा होगा लेकिन आप बेहतर प्रदर्शन की तरफ ध्यान दें। अभी नौकरी में बदलाव के लिए सही समय नहीं है। अपने खर्चों पर नियंत्रण रखेंगे तो कोष में वृद्धि के योग बन रहे हैं। पारिवारिक जीवन में माता-पिता का सहयोग मिलेगा।

*२:-वृषभ राशि:-* शुक्र आपकी राशि से पांचवें स्थान पर गोचर करने वाला है। इस दौरान छात्रों को शिक्षा के क्षेत्र में कामयाबी मिलेगी और नए अवसर भी प्राप्त होंगे। संतान से आपको शुभ समाचार सुनने को मिल सकता है, जिससे आपका मन प्रसन्न होगा। अगर आप परिवार को बढ़ाने के बारे में विचार कर रहे हैं तो यह समय उत्तम है। कार्यक्षेत्र में आपको नए अवसर प्राप्त होंगे और बेहद ऊर्जावान महसूस करेंगे।

*३:- मिथुन राशि:-* शुक्र आपकी राशि से चौथे स्थान पर गोचर करने वाला है। इस दौरान आपको माता का सुख मिलेगा और आपकी संपत्ति में इजाफा होगा। सोशल वर्क करने से आपकी लोकप्रियता में वृद्धि होगी और कार्यक्षेत्र में वरिष्ठ अधिकारी आपके कार्य को पसंद करेंगे। साथ ही आपकी आमदनी में वृद्धि के योग बन रहे हैं। आपके अंदर सोचने-समझने की शक्ति प्रबल होगी और हर कार्य में सौ फीसदी देंगे।

*४:-कर्क राशि:-* शुक्र आपकी राशि से तीसरे स्थान पर गोचर करने वाला है। इस दौरान आपको छोटे भाई-बहनों का पारिवारिक बिजनेस में सहयोग मिलेगा और आपके पराक्रम में वृद्धि होगी। कार्यस्थल और सामाजिक जीवन में आप काफी जोश व उत्साह में नजर आएंगे। साथ ही भविष्य की उन्नति के लिए किए गए प्रयासो में उत्तम परिणाम प्राप्त होंगे। परिवार के साथ खुशी की अनुभूति होगी। लेकिन माता के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें।

*५:-सिंह राशि:-* शुक्र आपकी राशि से दूसरे स्थान पर गोचर करने वाला है। इस दौरान व्यवसाय में शुभ फलों की प्राप्ति होगी और साझेदारी में भी लाभ होगा। पारिवारिक बिजनस में विस्तार करेंगे, जिससे आपकी उन्नति और तरक्की होगी। नौकरी करने वालों को नए अवसर प्राप्त होंगे और आमदनी के नए स्त्रोत के बारे में पता चलेगा। पारिवारिक जीवन अच्छा रहेगा और जीवनसाथी के साथ अच्छा समय गुजारेंगे।

*६:-कन्या राशि:-* शुक्र आपकी राशि के लग्न भाव अर्थात पहले स्थान पर गोचर करने वाला है। इस दौरान कार्यक्षेत्र में काफी सकारात्मक महसूस करेंगे और आशावादी रहेंगे। लोग आपके कार्य से प्रभावित होंगे और आपकी ओर आकर्षित होंगे। लव लाइफ के लिए यह समय काफी शुभ है, आपके रिश्ते और अधिक मजबूत होंगे। ज्यादा इच्छावादी न बनें अन्यथा आप अपने लक्ष्य से भटक सकते हैं। पिता का हर कदम पर पूर्ण सहयोग मिलेगा।

*७:-तुला राशि:-* शुक्र आपकी राशि से 12वें स्थान पर गोचर करने वाला है। इस दौरान आप विदेश यात्रा की इच्छा पूरी होगी। साथ ही विदेशी स्रोतों से अच्छा व्याापर भी करेंगे। गोचर काल में आप अपनी योग्यता पर भरोसा रखकर ही कोई नया कार्य लें अन्यथा आप अच्छे मौके गंवा सकते हैं। भौतिक सुखों की वृद्धि होगी और कर्ज की समस्या गोचर काल में खत्म हो जाएगी। हालांकि दामपत्य जीवन में कुछ मतभेद हो सकते हैं।

*८:-वृश्चिक राशि:-* शुक्र आपकी राशि से 11वें स्थान पर गोचर करने वाला है। इस दौरान आपकी आय बढ़ेगी और धन संबंधित समस्या का अंत होगा। कार्यक्षेत्र में अनुकूल परिणाम प्राप्त होंगे और मित्रों के साथ अच्छा समय व्यतीत करेंगे और उनकी मदद से कई प्रोजेक्ट पूरे होंगे। विदेश जाने का अवसर प्राप्त होगा और आपके मान-सम्मान में वृद्धि होगी। छात्रों को भविष्य मजबूत बनाने के लिए नए विचार पर कार्य करना होगा।

*९:-धनु राशि:-* शुक्र आपकी राशि से 10वें स्थान पर गोचर करने वाला है। इस दौरान आपके पिता का रुतबा बढ़ेगा और राजनीतिक लोगों का दायरा भी बढ़ेगा। कार्यक्षेत्र में हर कार्य में अपना सौ फीसदी दें अन्यथा आपके शत्रु इस दौरान सक्रिय रहेंगे और आपको हानि पहुंचा सकते हैं। आपके अंदर नकारात्मक सोच ज्यादा रहेगी, जिससे आप नौकरी छोड़ने के बारे में विचार करेंगे लेकिन अभी नौकरी परिवर्तन के लिए सही समय नहीं है।

*१०:- मकर राशि:-* शुक्र आपकी राशि से नौवें स्थान पर गोचर करने वाला है। इस दौरान व्यापारिक यात्रा से अच्छा लाभ प्राप्त होगा और पिता से बेहतर संबंध बनेंगे। भाग्य का पूरा साथ मिलेगा, जिससे आपको हर कार्य में सफलता मिलेगा। गोचर काल में आप किसी धार्मिक यात्रा पर जा सकते हैं, इससे आपको मानसिक शांति प्राप्त होगी। लव लाइफ के लिए यह समय उत्तम है और संतान की कार्यक्षेत्र में तरक्की से मन प्रसन्न होगा।

*११:-कुंभ राशि:-* शुक्र आपकी राशि से आठवें स्थान पर गोचर करने वाला है। इस दौरान आपको जीवन में काफी उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ सकता है। परिवार के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखें और किसी भी तरह के कार्य करने में संकोच नहीं करें। कार्यक्षेत्र में आपको अच्छा महसूस होगा। अधिकारियों और साथ काम करने वालों का सहयोग और प्रशंसा मिलेगा। घर-परिवार का वातावरण अच्छा रहेगा लेकिन अपने गुस्से पर कंट्रोल रखें।

*१२:-मीन राशि:-* शुक्र आपकी राशि से सातवें स्थान पर गोचर करने वाला है। इस दौरान कार्यक्षेत्र में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही आपकी छवि को भी नुकसान पहुंच सकता है। साझेदारी में किए गए बिजनस में विवाद हो सकता है। स्वास्थ्य और वैवाहिक जीवन के लिए यह समय सही नहीं है। साथी के साथ अभी अपनी भावनाओं को उजागर ना करें अन्यथा परेशानी में पड़ सकते हैं..!!

🪐ग्रह नहीं पहुंचाएंगे नुकसान, देंगे वरदान, तकिए के नीचे रख लें इस चीज को*

 


कुल नौ ग्रह हैं रवि, चंद्र, मंगल, बृहस्पति, बुध, शुक्र, शनि, राहू और केतु। इन नवग्रहों में से प्रत्येक ग्रह विभिन्न परिणाम देते हैं और 12 विभिन्न राशियों में बैठकर कभी-कभी बिल्कुल विपरीत परिणाम देते हैं। हर राशि में प्रत्येक ग्रह के कुछ अच्छे और कुछ बुरे परिणाम होते हैं। तंत्र शास्त्र के अनुसार नवग्रहों की स्थिरता के लिए कुछ सरल और सुलभ उपाय बताए गए हैं। जिनको अपने जीवन में अपनाने से ग्रह नहीं पहुंचाएंगे नुकसान और देंगे वरदान।


* सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो बैड के नीचे तांबे के बर्तन में पानी भरकर रखें। ऐसा करना संभव न हो तो तकिए के नीचे लाल चंदन रखें।


* [चंद्र ]खराब हो तो बैड के नीचे चांदी के पात्र में जल भरकर रखें। संभव न हो तो चांदी के गहने पहनें।


* [मंगल ]परेशानी दे रहा हो तो कांसे के बर्तन में पानी भरकर रखें अथवा तकिए के नीचे सोने-चांदी की धातु से बने ज़ेवर रखें।


* बुध जीवन में उथल-पुथल मचा रहा हो तो तकिया के नीचे सोने से बने अलंकार रखें।


* देवगुरू बृहस्पति टेढ़ी चाल चल रहे हो तो हल्दी की गांठ पीले कपड़े में बांधकर तकिए के नीचे रखें।

* [शुक्र ]की शुभता के लिए चांदी की मछली बनाकर तकिए के नीचे रखें अथवा चांदी के पात्र में जल भरकर पलंग के नीचे रखें।


* शनि से संबंधित कोई भी समस्या हो तो लोहे के पात्र में जल भरकर बैड के नीचे रखें अथवा पिलो के नीचे शनिदेव का प्रिय रत्न नीलम रखें।


🧿पूजा सुपारी के 10 ऐसे उपाय, जो बदल देंगे आपके मुसीबत के दिन।

 


जब सुपारी की विधिवत पूजा की जाती है तो वह चमत्कारी हो जाती है। अगर आप इस चमत्कारी सुपारी को हमेशा अपने पास रखते हैं तो जीवन में कभी भी पैसों की तंगी नहीं रहती है। ये हैं सुपारी के 10 सटीक उपाय... 

 

1. पूजा की सुपारी पर जनेऊ चढ़ाकर जब पूजा जाता है तो यह अखंडित सुपारी गौरी गणेश का रूप बन जाती है। इस सुपारी को तिजोरी में रखने पर घर में लक्ष्मी स्थायी रूप से निवास करने लगती हैं और इससे सौभाग्य आने लगता है। 


पूजा में इस्तेमाल की गई सुपारी को तिजोरी में रखना भी लाभदायक होता है। सुपारी को धागे में लपेटें और अक्षत, कुमकुम लगाकर पूजा जरूर कर लें। पूजा करके तिजोरी में रखी गई सुपारी बहुत लाभदायक होती है।


3. व्यापार में तरक्की के लिए भी सुपारी बहुत सहायक होती है। माना जाता है कि शनिवार की रात पीपल के पेड़ की पूजा करके सुपारी और उसके साथ एक रुपये का सिक्का रखें। अगले दिन उस पेड़ का पत्ता तोड़कर लाएं उस पर सुपारी रखें और इसे अपनी तिजोरी में रखें इससे व्यापार में बढ़ोत्तरी होती है।

 

4. पान का पत्ता रखें उस पर सिन्दूर में घी मिलाकर स्वस्तिक बनाएं और उस पत्ते पर कलावे में लपेटी हुई सुपारी रख कर पूजा करनी चाहिए। यह उपाय घर में सफलता के लिए द्वार खोलता है। 


5. अगर आपका कोई काम बनते बनते रह जाता है या आपको किसी कार्य में लगातार असफलता मिल रही है तो जब भी उस कार्य को करने जाए तो एक लौंग और सुपारी अपने पास रख लिया करें। काम के समय लौंग को अपने मुंह में रख लें और उसे चूसें। सुपारी घर आने के बाद वापस गणेशजी के फोटो के सामने रख दें। इससे रूका हुआ काम यकीनन पूरा होगा। 

 

6. सुपारी को चांदी की डिबिया में अबीर लगाकर किसी भी पूर्णिमा के दिन पूजा घर में रखें तो घर में मंगल कार्य जल्दी होते हैं। 


7. हल्दी, कुंकुम और चावल लगाकर सुपारी पर मौली लपेटें और इसे किसी भी गुरुवार को विष्णु-लक्ष्मी मंदिर में छुपाकर आ जाएं। इससे  अविवाहित कन्या की शादी के योग बनते हैं।

 

8. अगर घर में कोई भी मांगलिक कार्य हो तो उसके निर्विघ्न संपन्न होने के लिए सुपारी को बोलकर लाल कपड़े में बांधकर छुपा दें। जब कार्य अच्छे से संपन्न हो जाए तो यह सुपारी किसी गणेश मंदिर में जाकर रख दें। 


9 . घर से जब कोई तीर्थ यात्रा पर जाए तो उसके सकुशल वापिस आने तक तुलसी के गमले में सुपारी गाड़ दें। आने पर उसे धोकर किसी भी मंदिर में चढ़ा दें।  


10. सुपारी को 7 बार अपने पर से उतार कर हवन कुंड में डालने से हर तरह की अला-बला दूर होती है।

🐕‍🦺घर मे कुत्ता पालने के विषयमे....‼️*




आवारा कुत्ते को भोजन देने का फल शास्त्रों ने बहुत ही अधिक बताया और साथ ही पालतू कुत्तों के पालन से भी बारह वर्षों तक सब प्रकार के एश्वर्य-प्रगति देखने को मिलता है पर बारहवें वर्ष के पश्चात घर में कलह-अशांति, केश-मुकदमा तथा बीसवें वर्ष 'सर्वस्व' से भी हाथ धोना पड़ सकता है इसलिए घर में कुत्ता पालन न करें।

            मेरा यह लेख शास्त्रमत से चलनेवाले धर्मावलंबियों के लिए है आधुनिक विचारधारा के लोग इससे सहमत या असहमत होने के लिए बाध्य नहीं है। 


महाभारत में महाप्रस्थानिक पर्व का अंतिम अध्याय ,इंद्र ,धर्मराज और युधिष्ठिर संवाद में इस बात का उल्लेख है।


जब युधिष्टिर ने पूछा कि यह कुत्ता मेरे साथ यहां तक चलकर आया तो मै इस कुत्ते को अपने साथ स्वर्ग क्यों नहीं ले जा सकता?


          *तब इंद्र ने कहा- "हे राजन कुत्ता पालने वाले के लिए स्वर्ग में स्थान नहीं है ऐसे व्यक्तियों का स्वर्ग में प्रवेश वर्जित है।*

        कुत्ते से पालित घर मे किये गए यज्ञ, और पुण्य कर्म के फल को क्रोधवश नामक राक्षस उसका हरण कर लेते है।

और तो और उस घर के व्यक्ति जो कोई दान, पुण्य, स्वाध्याय, हवन और कुवा-बावड़ी इत्यादि बनाने के जो भी पुण्य फल इकट्ठा होता है वह सब घर में कुत्ते की दृष्टि पड़ने मात्र से निष्फल हो जाता है।

 इस लिए कुत्ते का घर मे पालना निषिद्ध और वर्जित है।


   ज्योतिष के अनुसार भी कहा जाता है कि कुत्ता राहु ग्रह का प्रतीक है। अभिप्राय कुते को घर मे रखना राहु को अपने पास रखने के समकक्ष है। और राहु भक्तिभाव से दूर करता है।


   कुत्ते को संरक्षण देना चाहिए, अगर आप सामर्थ्यवान हैं तो रोज पच्चीस-पचास या सामर्थ्यनुसार कुत्तों को भोजन दें, घर की रोज की अंतिम एक रोटी पे कुत्ते का अधिकार है इस पशु को भूलकर भी प्रताड़ित नही करना चाहिए और दूर से ही इसकी सेवा करनी चाहिए इससे अवधूत भगवान दत्तात्रेय और भैरव बाबा प्रसन्न होते हैं।

कुत्तों के लिए घर के बाहर बाडा बनवाएं 

घर के अंदर नहीं, यह शास्त्र मत है।

🌹स्वस्तिक के चमत्कारिक प्रयोग🌹

 


ऋग्वेद में स्वस्तिक के देवता सवृन्त का उल्लेख है। स्वस्तिक का आविष्कार आर्यों ने किया और पूरे विश्‍व में यह फैल गया। भारतीय संस्कृति में इसे बहुत ही शुभ कल्याणकारी और मंगलकारी माना गया है। स्वस्तिक शब्द को 'सु' और 'अस्ति' दोनों से मिलकर बना है। 'सु' का अर्थ है शुभ और 'अस्तिका' अर्थ है होना यानी जिससे 'शुभ हो', 'कल्याण हो' वही स्वस्तिक है, 


 द्वार पर स्वस्तिक :द्वार पर और उसके बाहर आसपास की दोनों दीवारों पर स्वस्तिक को चिन्न लगाने से वास्तुदोष दूर होता है और शुभ मंगल होता है। इसे दरिद्रता का नाश होता है। घर के मुख्य द्वार के दोनों और अष्‍ट धातु और उपर मध्य में तांबे का स्वस्तिक लगाने से सभी तरह का वस्तुदोष दूर होता है।


पंच धातु का स्वस्तिक बनवा के प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद चौखट पर लगवाने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। चांदी में नवरत्न लगवाकर पूर्व दिशा में लगाने पर वास्तु दोष दूर होकर लक्ष्मी प्रप्ति होती है। वास्तुदोष दूर करने के लिए 9 अंगुल लंबा और चौड़ा स्वस्तिक सिंदूर से बनाने से नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मकता में बदल जाती है।


घर आंगन में बनाएं स्वस्तिक : घर या आंगन के बीचोबीच मांडने के रूप में स्वस्तिक बनाया जाता है। इसे बनाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाती है। स्वस्तिक के चिह्न को भाग्यवर्धक वस्तुओं में गिना जाता है। पितृ पक्ष में बालिकाएं संजा बनाते समय गोबर से स्वस्तिक बनाती है। इससे घर में शुभता, शां‍ति और समृद्धि आती है और पितरों की कृपा भी प्राप्त होती है।

मांगलिक कार्यों में लाल पीले रंग का स्वस्तिक  अधिकतर लोग स्वस्तिक को हल्दी से बनाते हैं। ईशान या उत्तर दिशा की दीवार पर पीले रंग का स्वस्तिक बनाने से घर में सुख और शांति बनी रहती है। यदि कोई मांगलिक कार्य करने जा रहे हैं तो लाल रंग का स्वस्तिक बनाएं। इसके लिए केसर, सिंदूर, रोली और कुंकुम का इस्मेमाल करें।


धार्मिक कार्यों में रोली, हल्दी या सिंदूर से बना स्वस्तिक आत्मसंतुष्‍टी देता है। त्योहारों पर द्वार के बाहर रंगोली के साथ कुमकुम, सिंदूर या रंगोली से बनाया गया स्वस्तिक मंगलकारी होता है। इसे बनाने से देवी और देवता घर में प्रवेश करते हैं। गुरु पुष्य या रवि पुष्य में बनाया गया स्वस्तिक शांति प्रदान करता है।


 देवता होंगे प्रसन्न  स्वस्तिक बनाकर उसके ऊपर जिस भी देवता की मूर्ति रखी जाती है वह तुरंत प्रसन्न होता है। यदि आप अपने घर में अपने ईष्‍टदेव की पूजा करते हैं तो उस स्थान पर उनके आसन के ऊपर स्वस्तिक जरूर बनाएं। प्रत्येक त्योहार जैसे नवरात्रि में कलश स्थापना, दीपावली पर लक्ष्मी पूजा आदि अवसरों पर स्वस्तिक बनाकर ही देवी की मूर्ति या चित्र को स्थापित किया जाता है।


देव स्थान पर स्वस्तिक बनाकर उसके ऊपर पंच धान्य या दीपक जलाकर रखने से कुछ ही समय में इच्छीत कार्य पूर्ण होता है। इसके अलावा मनोकामना सिद्धी हेतु मंदिर में गोबर या कंकू से उलटा स्वस्तिक बनाया जाता है। फिर जब मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वहीं जाकर सीधा स्वस्तिक बनाया जाता है।


देहली पूजा  प्रतिदिन सुबह उठकर विश्वासपूर्वक यह विचार करें कि लक्ष्मी आने वाली हैं। इसके लिए घर को साफ-सुथरा करने और स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद सुगंधित वातावरण कर दें। फिर भगवान का पूजन करने के बाद अंत में देहली की पूजा करें। देहली (डेली) के दोनों ओर स्वस्तिक बनाकर उसकी पूजा करें। स्वस्तिक के ऊपर चावल की एक ढेरी बनाएं और एक-एक सुपारी पर कलवा बांधकर उसको ढेरी के ऊपर रख दें। इस उपाय से धनलाभ होगा।


 व्यापार वृद्धि हेतु  यदि आपके व्यापार या दुकान में बिक्री नहीं बढ़ रही है तो 7 गुरुवार को ईशान कोण को गंगाजल से धोकर वहां सुखी हल्दी से स्वस्तिक बनाएं और उसकी पंचोपचार पूजा करें। इसके बाद वहां आधा तोला गुड़ का भोग लगाएं। इस उपाय से लाभ मिलेगा। कार्य स्थल पर उत्तर दिशा में हल्दी का स्वस्तिक बनाने से बहुत लाभ प्राप्त होता है।


सुख की नींद सोने हेतु  यदि आप रात में बैचेन रहते हैं। नींद नहीं आती या बुरे बुरे सपने आते हैं तो सोने से पूर्व स्वस्तिक को तर्जनी से बनाकर सो जाएं। इस उपाय से नींद अच्छी आएगी।


मंगल कलश  एक कांस्य या ताम्र कलश में जल भरकर उसमें कुछ आम के पत्ते डालकर उसके मुख पर नारियल रखा होता है। कलश पर रोली, स्वस्तिक का चिन्ह बनाकर उसके गले पर मौली बांधी जाती है। इसे मंगल कलश कहते हैं। यह घर में रखने से धन, सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है। घर स्थापना के समय भी मिट्टी के घड़े पर स्वस्तिक बनाया जाता है।


. तिजोरी पर बनाएं स्वस्तिक : अक्सर लोग तिजोरी पर स्वस्तिक बनाते हैं क्योंकि स्वस्तिक माता लक्ष्मी का प्रतीक है। तिजोरी में हल्दी की कुछ गांठ एक पीले वस्त्र में बांधकर रखें। साथ में कुछ कोड़ियां और चांदी, तांबें आदि के सिक्के भी रखें। कुछ चावल पीले करके तिजोरी में रखें।


उल्टा स्वस्तिक 

बहुत से लोग किसी देव स्थान, तीर्थ या अन्य किसी जागृत जगह पर जाते हैं तो मनोकामना मांगते वक्त वहां पर उल्टा स्वस्तिक बना देते हैं और जब उनकी उनकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो पुन: उक्त स्थान पर आकर सीधा स्वस्तिक मनाकर धन्यवाद देते हुए प्रार्थना करते हैं और प्रसाद चढ़ाते हैं। ध्यान रखें कभी भी मंदिर के अलावा कहीं और उल्टा स्वस्तिक नहीं बनाना चाहिए।


 अन्य लाभ : वैवाहिक जीवन की कठिनाइयों को दूर करने के लिए पूजा करते समय हल्दी से स्वस्तिक बनाना चाहिए। सभी प्रकार की सामान्य पूजा या हवन में कुमकुम या रोली से स्वस्तिक बनाया जाता है। घर को बुरी नजर से बचाने के लिए घर के बाहर गोबर से स्वस्तिक बनाया जाता है।

कुलगुरू ,कुलदेवी देवता के आर्शिवाद का रहस्य

 

कुलगुरू  कुलदेवी, कुलदेवता एक गहन और महत्वपूर्ण विषय है । देखने में और सोचने में ये विषय छोटा लगता है । पर आप जितना छोटा समझते है, यह उतना  ही पेचिदा विषय है । एक रहस्यमयी राज है । एक वहुत विचारणीय विषय है ।इस विषय को समझने और जानने में मनुष्य को बहुत वक़्त लग जाता है ।


कुलगुरु, कुलदेवी, कुलदेवता की कृपा का अर्थ है , सौ सुनार की एक लोहार की । बिना इनकी कृपा के वंश ही क्या, कोई भी काम, मुकदमा, उलझे काम आदि कुछ भी आगे नहीं बढ सकता ।


 आज जो हम घर मे, व्यापार में छोटी छोटी उलझने, अशान्ति, तनाव देख रहे है । प्राय घर में इन का आगमन होने का एक ही कारण है की घर कि कुलदेवी व कुलदेवता का रुष्ट होना । यानि की आराधना ना करना । इनका घर में उचित सम्मान ना होना, वहन, बेटी, बहु का सम्मान ना करने से ये रूष्ट हो जाते है ।


आज बहुत से मनुष्य विभिन्न साधनाए तो करते हैं । पर  उन्हें उस साधना में सफतला नही मिलती । वह साधना करते समय एक भुल कर बैठते है । मनुष्य कोई भी काम करे या साधना करे । जब तक वह अपने कुलगुरु,कुलदेवी,कुलदेवता की पुजा ना करे वा उसे ना पुकारे तब तक   सफलता हासिल नही हो सकती । उनके आर्शिवाद के विना कोई भी साधना करो या काम करो । उसमें यश मिलना नामुमकिन है । 

उलटा कुलदेवी,कुलदेवता की रुष्टता और ज्यादा बढ़ती जाती हैं । और वह जो भी काम करते है उसमें उन्हे यश नही मिलता है ।


कई घरों में आज भी ये परंपरा हैं कि घर में पूजा करते वक्त कुलदेवी के रूप में श्रीफल अथवा प्रतिमा का पूजन करते है । हर अष्टमी, नवमी को कुलदेवी की विशेष पुजा आराधना करते है ।


 नवरात्रा के समय घर के चौखट पे पुजा करके कुलदेवी को घर में आगमन करने का न्यौता देते है और नौ दिन नवरात्री धुमधाम साथ मनाते है । पुराने समय में घर घर में एक स्थान हुआ  करता था । घर में किसी की शादी हो, बच्चा हुआ हो, नई जमीन, जायदाद खरिदी हो, पहले उस स्थान पर अपनी  कुलगुरु कुलदेवी व कुलदेवता  को भेंट अर्पीत करके उनसे आर्शिवाद लेते थे । और हर काम और खुशी में आगे हो मार्ग दर्शन करने को कहते थे ।


उस समय घर के बुजुर्ग साल में एक वार उस थान पे सपरिवार पुजा करते थे ।  फिर कुलदेवी देवता को भोग लगाकर सपरिवार भोजन ग्रहण करते थे । वह घर के छोटे छोटे काम भी विना कुलगुरु, कुलदेवी, कुलदेवता को पुछे विना नहीं करते थे । कही वहार की यात्रा भी करते थे तो  कुलगुरु ,कुलदेवी, कुलदेवता से पहले अनुमती लेते थे । फिर ही यात्रा करते थे । घर के वडे वडे काम से लेकर छोटे से छोटे काम भी विना कुलदेवी के आज्ञा या अनुमती के वैगर नही करते थे ।


साल में दो बार कुलदेवी की साधना एवं हवन आवश्यक करवाते थे । और ये परम्परा कुछ घरों में आज भी करते है ।


 हर घर की एक कुलदेवी होती हैं । आज भारत में 90% परिवार वाले को अपने कुलदेवी के वारे में पता ही नहीं है । कई परिवार को तो पिढियों से अपनी कुलदेवी एवं कुलदेवता का नाम तक पता नही है । उन पिढियों की पिढि दर पिढि में आज तक किसी ने भी कुलदेवी की पुजा आराधना नही कि और ना ही उने इस बारे कोई जानकारी है । और ना ही उनके पुर्वज ने उनको इस बारे में कोई ज्ञान दिया । घर में कुलदेवी व कुलदेवता की पुजा  आराधना ना होने के कारण ही एक नकारात्मक दबाव उस घर के कुल के ऊपर बन जाता हैं । और अनुवांशिक समस्या पैदा होने लगती हैं । 


बहुत से घर एवं जगहों पर देखा हैं । कुलदेवी की कृपा के बिना अनुवांशिक बीमारी पीढ़ी में आ जाती है । एक ही बीमारी के लक्षण सभी लोगो में दिखते हैं । मनासिक विकृतियाँ अथवा तनाव, अशान्ति पूरे परिवार में आना, कुछ परिवार एय्याशी की ओर इतने जाते है कि सब कुछ गवा देते हैं, बच्चे भी गलत मार्ग पर भटक जाते हैं, शिक्षा में अड़चनें आती है, शादी विवाह समय पे ना होना, व्यापार में गिरावट आना, चलता फिरता काम एक दम से रुक जाना, अचानक स्वास्थ्य समस्या दिखना, सन्तान ना होना, कोट कचेरी के समस्या होना, मनासिक शान्ति ना होना, यात्राओं में अपघात होना, हर काम में दुर्घटना होना, व्यापार और जीवन में स्थिरता नहीं होना । परिवार के सदस्यों के बिच आपसी प्रेम का अभाव होना, कर्ज से मुक्ति ना मिलना आदि समस्या कुलदेवी एवं देवता का पुजा आराधना ना करने के कारण होता है ।


इन समस्या का समाधान किसी साधना या किसी ध्यान अथवा किसी दस महाविद्या के मंत्रो से दूर नहीं हो सकता । इन सब समस्यायों से छुटकारा पाना है, समाधान पाना है तो कुलदेवी, कुलदेवता का पुजा, आराधना, हवन आदि करना अति आवश्यक है । घर में उनको उचित स्थान देने की जरूरत है । साल में एक वार उनका गुणगान होना जरुरी है । नवरात्रा या विशेष तिथी में कन्या पुजन करके कुलदेवी का आव्हान करना अति आवश्यक है । कोई भी शुभ कार्य हो या पुजा आराधना हो । या दस महाविद्या की दीक्षा हो । सबसे पहले गुरु उस यजमान या साधक को कुलदेवी या कुलदेवता के वारे में पुछता है । और फिर वह पुजा आराधना आरम्भ करता है । कोई भी साधना हो या पुजा, सवसे पहले कुलदेवी की हि आराधना एवं पुजा का विधान है । विना उनके आर्शिवाद के कुछ भी संभव नही है । लेकिन आजकल पुजा, आराधना एवं साधना में गुरु सीधा मंत्र देते है या पुजा करवा देता है । वह कुलदेवी कुलदेवता का आव्हान करता ही नही है । जीस साधना या पुजा में कुलदेवी कुलदेवता का आव्हान नही होता है । यैसी पुजा, आराधना एवं साधना का कोई फल नही मिलता है ।


वह पुजा, आराधना एवं साधना ना होकर एक दिखावा रह जाता है । अगर आज इसे नहीं समझे तो आने वाली कल की पीढ़ी के लिए बहुत सी दिक्कतें आयेगी ।


 घर को मंदिर बनाना है, सभी समस्या से दुर रहना है, जीवन वसन्त बहार की तरह बनाना है, घर में शान्त वातावरण, दुखकष्ट रहित जीवन और खुशीया ही खुशीया से भरना है तो हर पल, हर क्षण, हर खुशी, हर दुख में सबसे पहले अपने कुलदेवी को पुकारो । उनका आव्हान करो । उनको स्मरण करो । उनका आर्शिवाद लो । तुम्हारे हर काम वनने लग जायेगे । पतझड वगियाँ में वसन्त लौट आयेगा । चारों और खुशीयाँ ही खुशीयाँ होगी । और ये सव संभव है सिर्फ कुलदेवी, कुलदेवता कि आराधना, पुजा, मानसम्मान एवं उनके आर्शिवाद से ।

📚🥡अंक 6 का रहस्य🥡📚


🌹अंक छह में उन लोगो को लेना चाहिए जिनका जन्म महीने की 6, 15, या 24 तारीख को हुआ हो. अंक 6 वाले जातक विपरीत लिंग को बहुत आसानी से आकर्षित कर लेते हैं. शुक्र ग्रह की शक्ति के कारण इनके व्यक्तित्त्व में आकर्षण करने की शक्ति प्राकृतिक रूप से होती है.


परन्तु कुछ लोगो में ये शक्ति अधिक और कुछ में कम होती है. इसका कारण होता है कुंडली में शुक्र का स्थान और शक्ति.


ये लोग रोमांस में , प्रेम के मामलो में बहुत सफल होते दिखाई देते हैं. परन्तु इनका प्रेम वास्तविक होता है न की सिर्फ काम वासना.


ऐसे लोग कला जगत में भी खूब नाम करते हैं. ये मित्रता और शत्रुता दोनों ही खूब करना जानते हैं. अंक 6 वाले लोगो के मित्र अंक हैं 3, 6 और 9.


प्रस्तुति कारण करना इनको खूब आता है, सजना और सजाना इनको पसंद होता है.

इनके लिए भाग्यशाली रंग गुलाबी है और हल्का आसमानी है.

हीरा और फिरोजा रत्न इनको फलता है.


ऐसे लोग भले ही गरीब घर में जन्मे पर इनका पहनावा देखके कोई इनको पहचान नहीं सकता है.


भौतिक जीवन के सफलता के लिए ये जरुरी है की शुक्र अच्छा हो.

📚🌻अंक 5 का रहस्य🌻📚

 


💥अंक 5 उन लोगो पर लागु होता है जिनका जन्म महीने के 5, 14 , 23 को हुआ हो.


इन लोगो की चंचलता ही इनके लिए कई बार मुसीबत का कारण बन जाती है. ये लोग बोलते बोलते कई बार सब भूल जाते हैं और मर्यादा का भी ध्यान नहीं रखते हैं.


अंक  पांच के लोग विद्वान् होते हैं परन्तु कार्यों मन शीघ्रता करना इनका स्वभाव होता है. अपने गुणों के कारण ऐसे लोग अच्छे व्यापारी बनते हैं.


लोगो को अपने बातों की जाल में उलझाना ये लोग खूब जानते हैं. इनका जीवन काफी मनोरंजक होता है परन्तु फिर भी कुछ तनाव हमेशा बना रहता है.


अगर कुंडली में बुध अच्छा हो और ये लोग किसी सही मार्ग में चल रहे हो तो इनको कोई बिगड़ नहीं सकता परन्तु कुंडली में बुध ख़राब हो और अगर इन्होने गलत मार्ग चुन रखा हो तो फिर ये अपनी साड़ी हदे पार करके गलत कार्य करते हैं. इनको सुधारना मुमकीन नहीं होता है.


स्थिरता इनका स्वभाव नहीं है इसीलिए भटकते रहते हैं, दलाली के कार्यों से भी इनको बहुत लाभ होता है. ये लोग अपनी जुबान का स्तेमाल करके कमाना जानते हैं.


हलके रंग इनके लिए अच्छा है जिसमे हरा रंग, सफ़ेद रंग इनके लिए शुभ है.

बुधवार और शुक्रवार भी लाभ दायक है. कांसे की वस्तुए इनके लिए लाभदायक होता है।

🪔देवी की पूजा में ज्योति क्यों जगायी जाती है ?





देवीभागवत पुराण में कहा गया है–‘सृष्टि के आदि में एक देवी ही थी, उसने ही ब्रह्माण्ड उत्पन्न किया; उससे ही ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र उत्पन्न हुए । अन्य सब कुछ उससे ही उत्पन्न हुआ । वह ऐसी पराशक्ति (महाशक्ति) है ।’


सारा जगत अनादिकाल से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शक्ति की उपासना में लगा हुआ है । महाशक्ति ही सर्वोपरि है । ब्रह्म भी शक्ति के साथ पूजे जाते हैं । जैसे पुष्प से गंध अलग नहीं की जा सकती है, गंध ही चारों ओर फैल कर पुष्प का परिचय कराती है; उसी तरह शक्ति ही ब्रह्म का बोध कराती है । सभी जगह शक्ति का ही आदर और बोलबाला है क्योंकि शक्तिहीन वस्तु जगत में टिक ही नहीं सकती है । 


देवताओं के अहंकार के नाश के लिए देवी ने धारण किया ज्योति-अवतार!!!!!!!!


देवी (माता) की पूजा में ज्योति जगाने (जलाने) का सम्बन्ध देवी के ज्योति-अवतार से है । देवी के ज्योति-अवतार की कथा इस प्रकार से है—


एक बार देवताओं और दैत्यों में युद्ध छिड़ गया । इस युद्ध में देवता विजयी हुए । इससे देवताओं के मन में अहंकार हो गया । सभी देवता अपने मन में कहते—‘यह विजय मेरे कारण हुई है, यदि मैं न होता तो विजय नहीं हो सकती थी ।’ 


मां जगदम्बा बड़ी कृपालु हैं । वे देवताओं के अहंकार को समझ गयीं । उनको पता था कि यह अहंकार देवताओं को ‘देवता’ नहीं रहने देगा । अहंकार के कारण ही असुर ‘असुर’ कहलाते हैं । देवताओं में वही अहंकार जड़े जमा रहा है, इसके कारण संसार को फिर कष्ट का सामना करना पड़ेगा।


देवताओं के अहंकार के नाश के लिए देवी एक ऐसे तेज:पुंज के रूप में उनके सामने प्रकट हो गयीं, वैसा तेज:पुंज आज तक किसी ने देखा न था । उस तेज:पुंज को देखकर सभी देवता हक्के-बक्के रह गये और एक-दूसरे से पूछने लगे—‘यह क्या है ? देवताओं को आश्चर्यचकित करने वाली यह माया किसके द्वारा रची गयी है ?’


भ्रमित हुए देवराज इन्द्र ने वायुदेव को उस तेज:पुंज के बारे में पता लगाने के लिए भेजा । घमण्ड से भरे हुए वायुदेव ने उस तेज:पुंज के पास गए । तेज:पुंज ने पूछा—‘तुम कौन हो ?’


वायुदेव ने कहा—‘मैं वायु हूँ । मातरिश्वा हूँ । सबका प्राणस्वरूप हूँ । मैं ही सम्पूर्ण जगत का संचालन करता हूँ ।’


तेज:पुंज ने वायुदेव के सामने एक तिनका रखकर कहा—‘यदि तुम सब कुछ संचालन कर सकते हो तो इस तिनके को चलाओ ।’


वायुदेव ने अपनी सारी शक्ति लगा दी पर तिनका टस-से-मस न हुआ । वे लज्जित होकर इन्द्रदेव के पास लौट आए और कहने लगे कि ‘यह कोई अद्भुत शक्ति है, इसके सामने तो मैं एक तिनका भी न उड़ा सका ।’


देवराज इन्द्र ने फिर अग्निदेव को बुलाकर कहा—‘अग्निदेव ! चूंकि आप ही हम लोगों के मुख हैं इसलिए वहां जाकर यह मालूम कीजिए कि ये तेज:पुंज कौन है ? ‘


इन्द्र के कहने पर अग्निदेव तेज:पुंज के पास गए । तेज:पुंज ने अग्निदेव से पूछा —‘तुम कौन हो ? तुममें कौन-सा पराक्रम है, मुझे बतलाओ ?’


अग्निदेव ने कहा—‘ मैं जातवेदा हूँ, अग्नि हूँ । सारे संसार को दग्ध करने की ताकत मुझमें है ।’ 


तेज:पुंज ने अग्निदेव से उस तिनके को जलाने के लिए कहा । अग्निदेव ने अपनी सारी शक्ति लगा दी पर वे उस तिनके को जला न सके और मुंह लटकाकर इन्द्रदेव के पास लौट आये ।


तब सभी देवता बोले—‘झूठा गर्व और अभिमान करने वाले हम लोग इस तेज:पुंज को जानने में समर्थ नहीं है, यह तो कोई अलौकिक शक्ति ही प्रतीत हो रही है । इन्द्रदेव ! आप हम सब के स्वामी हैं, अत: आप ही इस तेज:पुंज के बारे में पता लगाइए ।’


तब सहस्त्र नेत्रों वाले इन्द्र स्वयं उस तेज:पुंज के पास पहुंचे । इन्द्र के पहुंचते ही वह तेज:पुंज गायब हो गया । यह देखकर इन्द्र बहुत लज्जित हुए ।  तेज:पुंज के उनसे बात तक न करने के कारण वे अपने-आप को मन में छोटा समझने लगे । वे सोचने लगे कि अब मैं देवताओं को क्या मुंह दिखाऊंगा । मान ही महापुरुषों का धन है, जब मान ही न रहा तो इस शरीर का त्याग करना ही उचित है । इन्द्रदेव का सारा अहंकार नष्ट हो गया । 


तभी गगनमण्डल में आकाशवाणी हुई कि—‘इन्द्रदेव ! तुम पराशक्ति का ध्यान करो और उन्हीं की शरण में जाओ ।’ इन्द्रदेव पराशक्ति की शरण में आकर मायाबीज का जप करते हुए ध्यान करने लगे।


एक दिन चैत्रमास की नवमी तिथि को मां पराम्बा (महाशक्ति) ने अपना स्वरूप प्रकट किया । वे अत्यन्त सुन्दरी थीं, लाल रंग की साड़ी पहने उनके अंग-अंग से नवयौवन फूट रहा था । उनमें करोड़ों चन्द्रमाओं से बढ़कर आह्लादकता थी । करोड़ों कामदेव उनके रूप पर न्यौछावर हो रहे थे । उन्होंने चमेली की माला व वेणी व लाल चंदन धारण किया हुआ था ।


देवी बोलीं—‘मैं ही परब्रह्म हूँ, मैं ही परम ज्योति हूँ, मैं ही प्रणवरूपिणी हूँ । मेरी ही कृपा और शक्ति से तुम लोगों ने असुरों पर विजय पायी है । मेरी ही शक्ति से वायुदेव बहा करते हैं और अग्निदेव जलाया करते हैं । तुम लोग अहंकार छोड़कर सत्य को जानो ।’


देवी के वचन सुनकर देवताओं को अपनी भूल ज्ञात हो गयी और वे अहंकार रूपी असुर से ग्रस्त होने से बच गये । उन्होंने क्षमा मांगकर देवी से प्रसन्न होने की प्रार्थना की और कहा कि आप हम पर ऐसी कृपा करें कि हममें कभी अहंकार न आए ।


तब से देवी की पूजा—अष्टमी, नवरात्र व जागरण आदि में माता के ज्योति अवतार के रूप में ज्योति या अखण्ड ज्योति जगायी जाती है । नवरात्र में प्रतिदिन देवी की ज्योति जगाकर उसमें लोंग का जोड़ा, बताशा, नारियल की गिरी, घी, हलुआ-पूरी आदि का भोग लगाया जाता है ।

कन्या पूजन से सभी तरह के वास्तु दोष,विघ्न, भय और शत्रुओं का नाश होता है।*

  


⚱ *नवरात्रि में कन्या पूजन में ध्यान रखे कि कन्याओ की उम्र दो वर्ष से कम और दस वर्ष से ज्यादा भी न हो ।*


⚱ *शास्त्रों के अनुसार दो वर्ष की कन्या kanya को कुमारी कहा गया है । कुमारी के पूजन से सभी तरह के दुखों और दरिद्रता का नाश होता है ।*


⚱ *तीन वर्ष की कन्या को त्रिमूर्ति माना गया है । त्रिमूर्ति के पूजन poojan से धन लाभ होता है ।*


⚱ *चार वर्ष की कन्या को कल्याणी कहते है । कल्याणी के पूजन poojan से जीवन के सभी क्षेत्रों में सफलता और सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है ।*

 

⚱ *पांच वर्ष की कन्या kanya को रोहिणी कहा गया है । माँ के रोहणी स्वरूप की पूजा करने से जातक के घर परिवार से सभी रोग दूर होते है।*


⚱ *छः वर्ष की कन्या kanya को काली कहते है । माँ के इस स्वरूप की पूजा करने से ज्ञान, बुद्धि, यश और सभी क्षेत्रों में विजय की प्राप्ति होती है ।*


⚱ *सात वर्ष की कन्या को चंडिका कहते है । माँ चण्डिका के इस स्वरूप की पूजा करने से धन, सुख और सभी तरह की ऐश्वर्यों की प्राप्ति होती है ।*


⚱ *आठ वर्ष की कन्या को शाम्भवी कहते है । शाम्भवी की पूजा करने से युद्ध, न्यायलय में विजय और यश की प्राप्ति होती है ।*


⚱ *नौ वर्ष की कन्या को दुर्गा का स्वरूप मानते है । माँ के इस स्वरूप की अर्चना करने से समस्त विघ्न बाधाएं दूर होती है, शत्रुओं का नाश होता है और कठिन से कठिन कार्यों में भी सफलता प्राप्त होती है ।*


⚱ *दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा स्वरूपा माना गया हैं। माँ के इस स्वरूप की आराधना करने से सभी मनवाँछित फलों की प्राप्ति होती है और सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते है ।*


⚱ *इसीलिए नवरात्र के इन नौ दिनों तक प्रतिदिन इन देवी स्वरुप कन्याओं को अपनी श्रद्धा और सामर्थ्य से भेंट देना अति शुभ माना जाता है। इन दिनों इन नन्ही देवियों को फूल, श्रंगार सामग्री, मीठे फल (जैसे केले, सेब,नारियल आदि), मिठाई, खीर , हलवा, कपड़े, रुमाल,रिबन, खिलौने, मेहंदी आदि उपहार में देकर मां दुर्गा की अवश्य ही कृपा प्राप्त की जा सकती है ।*



⚱ *इन उपरोक्त रीतियों के अनुसार माता की पूजा अर्चना करने से देवी मां प्रसन्न होकर हमें सुख, सौभाग्य,यश, कीर्ति, धन और अतुल वैभव का वरदान देती है।*

🌞 सुर्य का तुला राशि मे गोचर 17 अक्टूबर - 16 नवंबर 2020🌞

 ♥️सुर्य का गोचर♥️

 

सूर्य का कुंडली में प्रभाव

यदि आपकी राशि में सूर्य अच्छी स्थिति में विराजमान है तो जीवन में आपको मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है। सूर्य की अच्छी स्थिति आपको अच्छे कामों को करने की तरफ प्रेरित करती है। ऐसे जातकों को खुद पर पूरा नियंत्रण होता है। अगर किसी जातक की कुंडली में सूर्य बली है तो उसके मन में सकारात्मक विचार आते हैं और जीवन के प्रति उसका नज़रिया सकारात्मक होता है। वहीं अगर किसी कुंडली में सूर्य की स्थिति अच्छी न हो तो इसके बुरे प्रभाव आपको परेशान कर सकते हैं।


 डॉ अशोक श्रीश्रीमाल के अनुसार  वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य आत्मा, पिता, पूर्वज, राज्य सम्मान, नेत्र और राजनीति आदि का कारक है। सूर्य के शुभ प्रभाव से विभिन्न कार्यक्षेत्र में उच्च पद की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी मान-सम्मान मिलता है। वहीं दूसरी तरफ यदि कुंडली पर सूर्य का अशुभ प्रभाव हो तो जातक को आँख संबंधी समस्या का योग, पिता को कष्ट और पितृ दोष की स्थिति बनती है। इसलिए जन्म कुंडली में सूर्य से संबंधित किसी भी परेशानी के समाधान के लिए ज्योतिष विशेषज्ञ सूर्य ग्रह से जुड़े विभिन्न उपाय अपनाने की सलाह देते है। सूर्य के गोचर के दौरान जातक को कैसा फल प्राप्त होगा, यह केवल और केवल इस बात पर निर्भर करता है कि उस गोचर के दौरान सूर्य एक कुंडली या राशि से किस भाव में संचरण कर रहा है। क्योंकि सभी 12 भावों में सूर्य के गोचर का परिणाम अलग-अलग होता है। समस्त संसार को उत्तम आरोग्य और जीवन प्रदान करने वाले  सूर्य ग्रह का साल 2020 में 17 अक्टूबर को सुबह 06:50 बजे सूर्य ग्रह राशिचक्र की सप्तम राशि तुला में प्रवेश करेगा और 16 नवंबर 2020 को सुबह 06:39 तक इस राशि में रहेगा। वैदिक ज्योतिष में पिता, नेतृत्व, इच्छा शक्ति, साहस, हड्डियों का प्रतिनिधित्व करने वाला सूर्य इस गोचर काल के दौरान अपनी नीच अवस्था में होगा। । सूर्य के गोचर काल के दौरान सभी राशि के जातकों को अलग-अलग फल मिलेंगे। सूर्य आत्मा का कारक ग्रह है और यह आपकी नेतृत्व क्षमता, प्रशासनिक क्षमता, पिता आदि का कारक है। यदि कुंडली में सूर्य मजबूत अवस्था में है तो ऐसा व्यक्ति राजा की तरह जिंदगी जीता है, वहीं जिस जातक की कुंडली में यह अच्छी अवस्था मे नहीं होता उसे जीवन में कई परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। सूर्य के इस राशि परिवर्तन का प्रभाव सभी राशियों पर होगा। आईये इस भविष्यफल के माध्यम से जानते हैं समस्त 12 राशियों पर सूर्य के  गोचर का क्या प्रभाव पड़ने वाला है। 


 🌹सूर्य के गोचर का सभी राशियों पर असर होगा। हर राशियों पर होने वाले इसके प्रभाव कुछ इस तरह होंगे। यह राशि फल चन्द्र राशि पर आधारित है तथा  बहुत ही सामान्य आधार पर है अतः किसी विशेष परिस्थिति में अपनी कुंडली की जाँच कराकर ही किसी निष्कर्ष पर पहुंचे . अच्छे या बुरे परिणाम आपकी वर्तमान दशा- अंतर दशा पर निर्भर करते हैं.

   


♥️卐0⃣ 1⃣ 🐑मेष :~ अ, ल, इ👉*: सूर्य ग्रह जो आपके प्यार, बुद्धि, संतान आदि के पांचवें घर का स्वामी है, इस गोचर के दौरान आपके प्रेम और रिश्तों के सातवें घर में प्रवेश करेगा। सूर्य की इस स्थिति से पता चलता है कि आपके जीवन में उतार-चढ़ाव आ सकते हैं और मतभेदों के कारण आपके रिश्ते खराब हो सकते हैं। इस दौरान जीवनसाथी के साथ बात करते समय आपको अपने क्रोध पर काबू रखना होगा।

व्यावसायिक रूप से, पंचम भाव प्लानिंग और आपके विचारों का प्रतिनिधित्व करता है और इस भाव का स्वामी “सूर्य” दुर्बल अवस्था में है। इससे पता चलता है कि इस दौरान आप अपने विचारों को वास्तविकता में ढालने की पूरी कोशिश करेंगे लेकिन, ऐसा हो पाना बहुत मुश्किल हो सकता है। इस गोचर के दौरान कार्यक्षेत्र में उच्च प्रबंधन के साथ रिश्तों में कुछ परिवर्तन आ सकता है लेकिन इन मतभेदों को ज्यादा तूल न देना ही आपके लिए सही रहेगा।

इस राशि के जो जातक साझेदारी में बिजनेस करते हैं, साझेदार के साथ उनके मतभेद हो सकते हैं। ऐसे समय में आपको अपने कागजातों को बहुत संभाल कर रखना चाहिए और साझेदारी खत्म होने की स्थिति में अपने लिए नए अवसर तलाशने के लिए तैयार रहना चाहिए।

इस राशि के जातकों के बच्चों का स्वास्थ्य इस गोचर काल के दौरान नाजुक रह सकता है, जो कि आपके लिए चिंता का विषय होगा। सूर्य पर शनि की दृष्टि भी पड़ रही है इसलिए सूर्य के इस गोचर काल के दौरान पिता के साथ मतभेद पैदा होने की भी संभावना है। 


♥️卐0⃣ 2⃣ 🐂वृषभ :~ ब, व, उ👉* :    सूर्य ग्रह का गोचर आपके षष्ठम भाव में होगा, जिससे प्रतियोगिताओं, शत्रुओं आदि के बारे में विचार किया जाता है। यह गोचर आपके लिए शुभ साबित होगा।

पेशेवर जीवन में आप ऊर्जा से भरे रहेंगे आपमें उत्साह देखने को मिलेगा और अपने अटके हुए कामों को पूरा करने में भी इस दौरान आप सफल होंगे। अपने प्रतिद्वंदियों पर आप विजय प्राप्त कर पाएंगे और आपके शत्रु आपसे दूरी बनाकर चलेंगे। मेष राशि के जातक होने के चलते आपकी मुख्य ताकत उन कार्यों को स्थिर करने की आपकी क्षमता जो आपके सामने आते हैं। इस गोचर काल के दौरान भी आपको ऐसे ही काम मिल सकते हैं।

यह गोचर उन पेशेवर लोगों के लिए शुभ साबित होगा जो लंबे समय से नौकरी में परिवर्तन करने की कोशिश कर रहे थे। सूर्य के इस परागमन के दौरान आपको कई अवसर इस दौरान प्राप्त हो सकते हैं। वहीं कुछ जातकों को वर्तमान नौकरी में ही नई जिम्मेदारियां मिल सकती जिससे उनकी योग्यता और अनुभव में निखार आएगा।

निजी जीवन में माता का खराब स्वास्थ्य आपकी परेशानी और चिंता का विषय बन सकता है। पैतृक संपत्ति को लेकर अपने भाई-बहनों के साथ कुछ कानूनी मुद्दों के चलते आपके धन की बर्बादी हो सकती है। हालांकि फैसला आपके हक में आने की पूरी संभावना है।

इस राशि के जो छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं उन्हें शुभ फलों की प्राप्ति होगी। स्वास्थ्य के लिहाज से देखा जाए तो यह गोचर आपके लिए अनुकूल साबित होगा, इस गोचर के दौरान किसी लंबी बीमारी से आपको छुटकारा मिल सकता है। सूर्य आपके चौथे घर का स्वामी है जो कि वाहन आदि का प्रतिनिधित्व करता है और इस गोचर के दौरान आपके छठे घर में अपनी दुर्बल अवस्था में है। इसलिए इस गोचर के दौरान आपको वाहन चलाते समय बहुत सावधान रहने की जरुरत है, नहीं तो दुर्घटना होने की संभावना है। 


♥️卐0⃣ 3⃣  💑मिथुन :~  क, छ, घ👉* : मिथुन राशि के जातकों के लिए सूर्य उनके प्रयासों के भाव का स्वामी होकर इस गोचर के दौरान प्रेम, बुद्धि और संतान के पंचम भाव में गोचर करेगा। सूर्य का यह गोचर मिथुन राशि के जातकों के लिए बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता।

पेशेवर जीवन की बात की जाए तो, वैदिक ज्योतिष में तृतीय भाव प्रयासों के बारे में बताता है और आपके इस भाव का स्वामी दुर्बल अवस्था में है। यह इंगित करता है कि कार्यक्षेत्र में आपके प्रयास सही दिशा में नहीं जाएंगे जिसके कारण आप परेशान हो सकते हैं। इसके कारण जीवन के अन्य क्षेत्रों पर भी बुरे प्रभाव पड़ सकते हैं। हालांकि इस राशि के जो जातक अपने शौक को अपने पेशे में बदलना चाहते हैं उनके लिए यह गोचर अनुकूल साबित होगा। लेकिन इस गोचर काल के दौरान किसी भी तरह की यात्रा करने से बचें क्योंकि यात्राओं से लाभ की बजाय आपको हानि हो सकती है।

आपके निजी जीवन की बात की जाए तो छोटे भाई-बहनों के साथ इस गोचर काल के दौरान आपके मतभेद हो सकते हैं। इसलिए आपको उनके साथ वक्त बिताना चाहिए, उनकी बातों को ध्यान से सुनें इससे आप लोगों के बीच की गलतफहमियां दूर होंगी।

तीसरी भाव से आपकी संचार क्षमता का भी पता चलता है, इस गोचर काल के दौरान आप अपनी बातों को लवमेट या जीवनसाथी से स्पष्टता से व्यक्त कर पाने में असमर्थ होंगे जिसके कारण रिश्ते में उतार-चढ़ाव आ सकते हैं। इस दौरान आपको ई-मेल, ग्रीटिंग कार्ड का सहारा लेकर अपनी भावनाओं को व्यक्त करना चाहिए और अपने सच्ची भावनाओं को व्यक्त करना चाहिए। ऐसा करने से आप दोनों के बीच की दूरी कम होगी।

आपके स्वास्थ्य जीवन की बात की जाए आपके बाहर का तला-भुना खाना खाने से बचना चाहिए नहीं तो पेट से संबंधी कोई समस्या आपको हो सकती है। अपनी दिनचर्या में योग, ध्यान या किसी शारीरिक गतिविधि को जगह दें। इससे अपनी ऊर्जा को आप सही दिशा दे पाएंगे। 


♥️卐0⃣4⃣ 🦀कर्क :~ ड, ह👉* :सूर्य जोकि आपके परिवार, धन, संसाधनों आदि के कारक द्वितीय भाव का स्वामी है, इस गोचर काल के दौरान अपनी दुर्बल अवस्था में आपके चतुर्थ भाव में रहेगा। सूर्य इस स्थिति में काफी कमजोर माना जाता है इसलिए कर्क राशि के जातकों के लिए यह बहुत शुभ नहीं कहा जा सकता।

पेशेवर रुप से देखा जाए तो द्वितीय भाव संसाधनों की ओर इशारा करता है और इसका स्वामी सूर्य अपनी दुर्बल अवस्था में है। यह इंगित करता है कि सूर्य के इस गोचर के दौरान आप अपने संसाधनों का सही से इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे जिसके कारण कार्यक्षेत्र में आपकी कार्य क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए इस गोचर के दौरान संसाधनों का सही से इस्तेमाल करना आपकी प्राथमिकता होनी चाहिए।

आपके निजी जीवन की बात करें तो वैदिक ज्योतिष में चतुर्थ भाव से आपकी माता के बारे में विचार किया जाता है। इस गोचर काल के दौरान आपकी माता की सेहत नाजुक रह सकती है। जिसके कारण आप भी परेशान रहेंगे। चूंकि चतुर्थ भाव प्रॉपर्टी के बारे में भी बताता है इसलिए इस समय काल में प्रॉपर्टी से जुड़े लेन-देन आदि में दिक्कतें आ सकती हैं। इसलिए प्रॉपर्टी से जुड़े कामों को यदि इस दौरान नहीं करेंगे तो आपके लिए अच्छा रहेगा और आप अपनी ऊर्जा को भी बचा पाएंगे।

आपके स्वास्थ्य जीवन पर नजर डालें तो, इस गोचर के दौरान आपको वाहन सावधानी से चलना चाहिए नहीं तो दुर्घटना हो सकती है। वैदिक ज्योतिष में सूर्य आपकी आंखों का प्रतिनिधित्व करता है और इस गोचर के दौरान यह अपनी नीच अवस्था मेें है। यह इंगित करता है कि अनिद्रा की समस्या इस दौरान आपको हो सकती है, आप तनावग्रस्त हो सकते हैं जिसके चलते आपकी आंखों पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है। खासकर दायीं आंख पर। इसलिए आपको 7-8 घंटों की पर्याप्त नींद लेनी चाहिए और अपनी आंखों पर स्ट्रैस डालने से बचना चाहिए। 


♥️卐0⃣5⃣ 🦁सिंह :~ म, ट👉* : सिंह राशि के जातकों के तृतीय भाव में सूर्य ग्रह का गोचर होगा। इस भाव से आपके साहस, पराक्रम, इच्छाओं और छोटे भाई-बहनों के बारे में विचार किया जाता है। सूर्य की यह स्थिति बताती है कि आपकी महत्वकांक्षाएं और साहसिक प्रवृति इस दौरान अपने शिखर पर होगी।

पेशेवर रुप से देखा जाए तो आप कुछ भी नया करने से इस दौरान हिचकिचाएंगे नहीं ऐसा करना आने वाले समय में आपकी सफलता के लिए बहुत अच्छा है। आपकी रचनात्मकता इस दौरान शिखर पर होगी, अपने प्रयासों और कार्यों को करिश्माई ढ़ंग से पूरा कर पाएंगे। इसके साथ ही इस दौरान आपको उच्च अधिकारियों से सराहना भी मिल सकती है।

अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल करने के लिए यह समय अच्छा है। इसलिए यदि आप खेलकूद जैसे किसी पेशे में हैं तो आपको कई अवसरों की प्राप्त हो सकती है जिनसे करियर में आगे बढ़ने में आपको मदद मिलेगी।

निजी जीवन में काफी उत्साही रहेंगे और अपने प्रियजनों के प्रति आपका नजरिया सुरक्षात्मक रहेगा। इससे आपके घर का माहौल बहुत सौहार्दपूर्ण रहेगा। प्रेम जीवन की बात की जाए तो सहायक और देखभाल करने वाला आपका पक्ष सामने आएगा और साथी को सांत्वना और आराम प्रदान करने में मदद करेगा।

हालांकि सिंह राशि के जातक होने के कारण गरिमा की भावना आपका सहज स्वभाव है। आप लोगों को सम्मान देते हैं और उनसे सम्मान की चाह करते हैं। हालांकि आपको यह समझना होगा कि गरिमा की भावना और घमंड में बहुत कम फासला होता है। कई बार आप इस फासले को खत्म कर देते हैं और जीवन के कई अच्छे अवसरों से हाथ धो देते हैं। इस गोचर काल के दौरान आपको इस बात का ख्याल रखना होगा।

आपके स्वास्थ्य जीवन की बात की जाए तो यह समय अच्छा रहेगा, हालांकि तृतीय भाव आपके कान का होता है और इस समय सूर्य अपनी नीच अवस्था में है, यह इंगित करता है कि आपको कान से जुड़ी कोई समस्या हो सकती है। इसलिए आपको ईयर फोन को ऊंची आवाज़ पर इस दौरान नहीं सुनना चाहिए। इसके साथ ही कान की सफाई पर भी ध्यान दें।

               

♥️卐0⃣6⃣ 👸🏼कन्या :~ प, ठ, ण👉*   पृथ्वी तत्व की कन्या राशि के जातकों के लिए सूर्य का गोचर संचित धन, परिवार और बचत के द्वितीय घर में होगा। चूंकि सूर्य खर्चों और अनिश्चित स्थितियों के आपके द्वादश भाव का स्वामी है इसलिए सूर्य का यह गोचर आपके लिए बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता।

व्यक्तिगत रूप से, आपको कुछ अवांछित परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक खर्च हो सकता है, इसके साथ ही सौदेबाजी में अनावश्यक तनाव और मानसिक बेचैनी पैदा हो सकती है। द्वितीय भाव से आपकी वाणी पर भी विचार किया जाता है इसलिए बातचीत के दौरान आपको सही शब्दों का चुनाव करना चाहिए। किसी पर व्यंग करने या किसी का मजाक उड़ाने से इस गोचर के दौरान बचें, अगर आप ऐसा करते हैं तो बाकी लोगों का दिल दुख सकता है।

पेशेवर और आर्थिक रुप से यह समय अच्छा नहीं है इसलिए इस गोचर के दौरान आपको निवेश करने से बचना चाहिए क्योंकि निवेश से आपको मनचाहे फलों की प्राप्ति होनी मुश्किल है। विशेष रूप से अपने वरिष्ठ प्रबंधन के साथ अपने कार्यस्थल पर किसी भी प्रकार के टकराव और संघर्ष से बचें। अगर आप ऐसा करते हैं तो इस गोचर के दौरान परेशानी में पड़ सकते हैं। आपके लिए इस समय सीमा के दौरान अपने संयम को बनाए रखना सर्वोपरि है।

विद्यार्थियों में इस दौरान एकाग्रता की कमी देखी जा सकती है, जिसके कारण उच्च शिक्षा अर्जित कर रहे लोगों की पढ़ाई में कमी आने की संभावना है।

स्वास्थ्य जीवन की बात की जाए तो आंखों और पेट से जुड़ी समस्याएं आपको हो सकती हैं। इसलिए स्वास्थ्य को लेकर आपको सावधान रहने की जरुरत। 


♥️卐0⃣7⃣ ⚖तुला :~ र, त👉* : सूर्य ग्रह का गोचर आपके लग्न भाव में होगा। इस भाव से आपकी आत्मा, व्यक्तित्व आदि के बारे में विचार किया जाता है। यह इंगित करता है कि सूर्य का यह गोचर आपके लिए बहुत अनुकूल नहीं रहेगा।

व्यावसायिक रूप से, आपकी सफलता और लाभ के एकादश घर के स्वामी सूर्य की यह स्थिति आपके लिए अच्छी नहीं है क्योंकि सूर्य यहां पर अपनी दुर्बल अवस्था में है। सूर्य की इस स्थिति से पता चलता है कि आपके जीवन में उतार-चढ़ाव इस दौरान आ सकते हैं। इस गोचर के दौरान, आपके दृष्टिकोण में आत्मविश्वास की कमी देखी जा सकती है और इस वजह से, आप दूसरों को खुश करने की कोशिश करते नजर आएंगे। इससे आपको अशांति भी हो सकती है जो आपके कार्यालय में आने वाले नकारात्मक परिणामों को और बढ़ा सकती है। इसलिए सूर्य के इस गोचर के दौरान आपको अपने फैसलों को लेकर दृढ़-निश्चय होना चाहिए और अपनी क्षमताओं पर विश्वास करना चाहिए।

निजी तौर पर, आप छोटे मुद्दों के बहाने आक्रामक और आसानी से नाराज हो सकते हैं जिससे आपके पारिवारिक जीवन और व्यक्तिगत संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए इस गोचर काल के दौरान आपको शांत रहकर अपने परिवार वालों से बात करनी चाहिए यही आपके लिए अच्छा रहेगा। जैसा कि एकादश भाव से आपके मित्रों के बारे में पता चलता है और इसका स्वामी आपके लग्न भाव में नीच स्थिति में है, इसलिए इस दौरान आप अपने दोस्तों के साथ समय बिताएंगे उतना आपके लिए लाभप्रद रहेगा।

आपके स्वास्थ्य जीवन की बात की जाए तो, सूर्य एक शुष्क ग्रह है और पित्त प्रकृति का कारक है इसलिए आपको त्वचा से संबंधी समस्याएं इस दौरान हो सकती हैं। इसलिए इस समस्या को दूर करने के लिए इस दौरान ज्यादा से ज्यादा पानी पीयें, मसालेदार और अत्यधिक तला-भुना खाना खाने से बचें। 


♥️卐0⃣8⃣ 🦂वृश्चिक :~ न, य👉* :  वृश्चिक राशि के जातकों के द्वादश भाव में सूर्य ग्रह का गोचर होगा, इस भाव से विदेश और जीवन में होने वाली हानियों के बारे में विचार किया जाता है। सूर्य का द्वादश भाव में गोचर आपके लिए शुभ नहीं कहा जा सकता।

पेशेवर रुप से देखा जाए तो सूर्य जोकि आपके कर्म और करियर के दशम भाव का स्वामी है द्वादश भाव में नीच अवस्था में विराजमान है, यह इंगित करता है कि इस गोचर काल के दौरान कार्यों को पूरा करने में उतार-चढ़ाव आ सकते हैं, आपको लगेगा कि आपको समस्या का सही समाधान नहीं मिल पाएगा। इसके कारण आप अपने कामों को बीच में ही छोड़ सकते हैं, हालांकि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए और अपने काम में निरंतरता बनाए रखनी चाहिए।

आपके अंदर अपने किये गये कार्यों की प्रशंसा पाने की प्रवृत्ति भी हो सकती है। इसकी वजह से आप हर काम को दूसरों की नजर में बेहतर बनने के लिए करेंगे ना कि यह सोचकर की आपके लिए क्या सही है। इसकी वजह से कार्यक्षेत्र में आपकी कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ सकता है। इस समय कोई वरिष्ठ कर्मचारी जिसे आप गुरुतुल्य मानते हैं आपकी मदद कर सकता है। हालांकि इस दौरान विदेशों से जुड़ा कोई लाभ आपको हो सकता है। इसलिए यदि आप अपनी ऊर्जा को इसी क्षेत्र में लगाएं तो आपके लिए अच्छा होगा।

आपके निजी जीवन की बात की जाए तो पिता या पितातुल्य किसी व्यक्ति से आपके मतभेद हो सकते हैं जिससे घर का माहौल खराब होगा। इसलिए बातचीत के दौरान अपनी सीमाओं से बाहर जाने से बचें। इस समय आपको ऐसा कोई भी काम नहीं करना चाहिए जिससे कानून का उल्लंघन हो, नहीं तो किसी बड़ी मुसीबत में पड़ सकते हैं।

आपके स्वास्थ्य जीवन पर नजर डालें तो, नीच के सूर्य पर शनि की दृष्टि होने के कारण आपको नींद से जुड़ी कोई परेशानी हो सकती है जिसके कारण आपकी आंखों पर भी बुरा प्रभाव पड़ सकता है। 


♥️卐0⃣9⃣ 🏹धनु :~ भ, ध,फ👉* : धनु राशि के जातकों का भाग्य का स्वामी सूर्य इस गोचर काल के दौरान लाभ के एकादश भाव में स्थित होगा। यह गोचर आपके लिए कई मायनों में सफलतादायक सिद्ध होगा। इस गोचर के दौरान कार्यक्षेत्र में आपको अपने वरिष्ठ अधिकारियों से प्रशंसा और सराहना प्राप्त होगी। आपको भाग्य का पूरा साथ मिलेगा जिसके चलते आपके बहुत कम प्रयास के बाद भी आपके कई महत्वपूर्ण काम पूरे हो जाएंगे। इस समय आपको कार्यक्षेत्र में अपने अधीनस्थ अधिकारियों से भी पूर्ण समर्थन प्राप्त होगा।

एकादश भाव नेटवर्क और संचार का प्रतिनिधित्व भी करता है, इसलिए सूर्य के इस गोचर काल में यदि आप सामाजिक रुप से सक्रिय रहते हैं तो लाभ मिल सकता है। इस दौरान यात्राएं करना भी आपके लिए शुभफलदायक सिद्ध होगा खासकर काम से जुड़ी यात्राएं आपके लिए आर्थिक रुप से फायदेमंद होंगी।

अगर आपके निजी जीवन पर नजर डालें तो, पिता के साथ यदि किसी बात को लेकर मनमुटाव था तो वो इस दौरान दूर हो जाएगा। इसके साथ ही आपके पिता को कार्यक्षेत्र में इस दौरान प्रगति मिलेगी। प्यार और रिश्ते आपमें नई ऊर्जा का संचार करेंगे। लेकिन कभी-कभी, आप अपने आदर्शों को लेकर बहुत कठोर हो सकते हैं जिसके कारण टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है।

स्वास्थ्य अच्छा रहेगा इस दौरान आप खुद को फिट महसूस करेंगे। यदि किसी बीमारी से परेशान चल रहे हैं तो इस दौरान उसमें सुधार करने की आप पूरी कोशिश करेंगे। 


♥️卐1⃣0⃣ 🐏मकर :~ ख, ज👉* : मकर राशि के जातकों के दशम भाव में सूर्य देव का गोचर होगा। इस भाव से आपके कर्म और करियर पर विचार किया जाता है। दशम भाव में सूर्य शक्तिशाली अवस्था में होता है। यह इंगित करता है कि सूर्य का यह गोचर आपके लिए शुभ रहेगा।

पेशेवर रुप से देखा जाए तो यह गोचर आपके लिए अच्छा होगा इस दौरान आप सक्रिय रहेंगे। सूर्य आपके अष्टम भाव का स्वामी है और इस गोचर के दौरान आपके दशम भाव में विराजमान है, इसलिए यदि आपके जीवन में कोई समस्या है तो, इस दौरान आप हर समस्या के मूल को समझने की कोशिश करते हुए उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे। इसके कारण आप कार्यक्षेत्र में अपने वरिष्ठों और अधिनस्थों से दो कदम आगे रहेंगे। कार्यक्षेत्र में नया पद मिलने की भी संभावना है। यदि आप किसी सरकारी संगठन में काम करने का अवसर ढूंढ रहे हैं या अनुबंध कर रहे हैं, तो आपको इस समय सीमा के दौरान से अच्छे परिणाम मिलने की संभावना है।

निजी जीवन की बात की जाए तो पिता के साथ इस दौरान आपके संबंध सुधरेंगे। प्रेम जीवन की बात की जाए तो इस गोचर के दौरान आपको अपने लवमेट से किसी तरह का सरप्राइज गिफ्ट मिल सकता है, जिससे आपका रिश्ता और भी मजबूत होगा।

शोध कार्य, उच्च अध्ययन या प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों को इस अवधि के दौरान अनुकूल वातावरण और समर्थन मिलने की संभावना है। इसके चलते विद्यार्थियों को शुभफल मिलेंगे।

यदि ब्लड प्रेशर या कॉलेस्ट्रॉल से जुड़ी कोई स्वास्थ्य समस्या आपको है तो इस दौरान आपको सावधानी बरतने की जरुरत है। शारीरिक क्रियाएं करना और तनाव से दूर रहने से आपके स्वास्थ्य में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं।


♥️卐1⃣1⃣ ⚱️कुंभ :~ ग, स, श, ष👉* : कुंभ राशि के जातकों के नवम भाव में सूर्य ग्रह का गोचर होगा। यह भाव भाग्य, धर्म, लंबी यात्राओं आदि का कारक है। इस भाव में सूर्य गोचर काल में आपको बहुत अच्छे फल नहीं देगा।

निजी जीवन की बात की जाए तो आपके रिश्तों और जीवनसाथी के सप्तम भाव का स्वामी इस गोचर काल के दौरान अपनी नीच अवस्था में है। यह इंगित करता है कि जीवनसाथी के साथ आपका टकराव हो सकता है जिसके कारण आपका रिश्ता प्रभावित होगा। लेकिन आपको जीवनसाथी को हर स्थिति में मनाना चाहिए क्योंकि कहीं न कहीं उनका साथ आपकी तरक्की और भाग्य से जुड़ा हुआ है।

पेशेवर जीवन पर नजर डालें तो यह समय काम से संबंधी यात्राओं के लिए अच्छा नहीं है, आपके खर्चे हो सकते हैं और घाटा होने की भी संभावना है। इसके साथ ही आपके विचारों और प्लान्स को भी गलत ठहराया जा सकता है। यह आपको निराश कर सकता है और वरिष्ठ प्रबंधन के साथ आपके टकराव हो सकते हैं। ऐसे समय में आपको धैर्य बनाए रखना चाहिए। यदि आप साझेदारी में बिजनेस करते हैं तो घाटा उठाना पड़ सकता है। इसलिए सूर्य के गोचर की इस अवधि में आपको पिता, पितातुल्य या अनुभवी लोगों से सलाह लेकर ही कोई कदम उठाना चाहिए।

इस राशि के जो विद्यार्थी उच्च शिक्षा अर्जित कर रहे हैं या प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं उनकी एकाग्रता में कमी आ सकती है, जिसके कारण पढ़ाई में कमी आ सकती है और परिणामों पर भी इसका बुरा असर पड़ सकता है।

स्वास्थ्य ठीक रहेगा लेकिन आपको अपने खान पान को लेकर सतर्क रहना होगा नहीं तो स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। 


♥️卐1⃣2⃣ 🐠मीन :~ द, च👉* : सूर्य ग्रह का गोचर आपके परिवर्तन और अनिश्चितता के अष्टम भाव में होगा जिसके चलते आपके जीवन में कुछ परेशानियां आ सकती हैं।

आर्थिक और पेशेवर रुप से देखा जाए तो यह समय चुनौतीपूर्ण रहेगा। अगर आप नौकरी में परिवर्तन करने के बारे में विचार बना रहे हैं तो इस गोचर के दौरान इस विचार को मूर्त रुप देने की कोशिश न करें। आपके शत्रु आपके खिलाफ किसी तरह की साजिश इस दौरान कर सकते हैं, इसलिए इस गोचर के दौरान आपको बहुत सतर्क रहने की जरुरत है। इसके साथ ही सूर्य के गोचर की इस अवधि में आपको लोन या उधार लेने से बचना चाहिए।

सूर्य ग्रह आपकी वाणी के द्वितीय भाव पर दृष्टि डाल रहा है, इसलिए बातचीत के दौरान आप थोड़े कठोर हो सकते हैं। इसकी वजह से घर के लोग और प्रियजनों से आपके रिश्ते खराब हो सकते हैं। इस गोचर काल के दौरान आपके मामा को स्वास्थ्य से जुड़ी कोई समस्या हो सकती है। चूंकि अष्टम भाव से जीवनसाथी के परिवार के बारे में विचार किया जाता है, सूर्य के गोचर के चलते ससुराल पक्ष के लोगों से आपके मतभेद हो सकते हैं जिसके कारण जीवनसाथी के साथ भी आपके संबंध खराब हो सकते हैं।

यदि आप विद्यार्थी हैं और किसी विषय को प्रारंभिक स्तर से सीखना चाहते हैं तो यह गोचर आपके लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा करेगा।

आपके स्वास्थ्य जीवन की बात की जाए तो आपकी प्रतिरोधक क्षमता इस दौरान कम रह सकती है। इसके चलते आपको आंखों और दाँतों से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए अपने खान पान पर विशेष ध्यान दें और ध्यान-योग को दिनचर्या में जगह दें इससे आपकी प्रतिरोधक क्षमता में इजाफा होगा। इससे आपकी सेहत भी दुरुस्त रहेगी।