कुलगुरू कुलदेवी, कुलदेवता एक गहन और महत्वपूर्ण विषय है । देखने में और सोचने में ये विषय छोटा लगता है । पर आप जितना छोटा समझते है, यह उतना ही पेचिदा विषय है । एक रहस्यमयी राज है । एक वहुत विचारणीय विषय है ।इस विषय को समझने और जानने में मनुष्य को बहुत वक़्त लग जाता है ।
कुलगुरु, कुलदेवी, कुलदेवता की कृपा का अर्थ है , सौ सुनार की एक लोहार की । बिना इनकी कृपा के वंश ही क्या, कोई भी काम, मुकदमा, उलझे काम आदि कुछ भी आगे नहीं बढ सकता ।
आज जो हम घर मे, व्यापार में छोटी छोटी उलझने, अशान्ति, तनाव देख रहे है । प्राय घर में इन का आगमन होने का एक ही कारण है की घर कि कुलदेवी व कुलदेवता का रुष्ट होना । यानि की आराधना ना करना । इनका घर में उचित सम्मान ना होना, वहन, बेटी, बहु का सम्मान ना करने से ये रूष्ट हो जाते है ।
आज बहुत से मनुष्य विभिन्न साधनाए तो करते हैं । पर उन्हें उस साधना में सफतला नही मिलती । वह साधना करते समय एक भुल कर बैठते है । मनुष्य कोई भी काम करे या साधना करे । जब तक वह अपने कुलगुरु,कुलदेवी,कुलदेवता की पुजा ना करे वा उसे ना पुकारे तब तक सफलता हासिल नही हो सकती । उनके आर्शिवाद के विना कोई भी साधना करो या काम करो । उसमें यश मिलना नामुमकिन है ।
उलटा कुलदेवी,कुलदेवता की रुष्टता और ज्यादा बढ़ती जाती हैं । और वह जो भी काम करते है उसमें उन्हे यश नही मिलता है ।
कई घरों में आज भी ये परंपरा हैं कि घर में पूजा करते वक्त कुलदेवी के रूप में श्रीफल अथवा प्रतिमा का पूजन करते है । हर अष्टमी, नवमी को कुलदेवी की विशेष पुजा आराधना करते है ।
नवरात्रा के समय घर के चौखट पे पुजा करके कुलदेवी को घर में आगमन करने का न्यौता देते है और नौ दिन नवरात्री धुमधाम साथ मनाते है । पुराने समय में घर घर में एक स्थान हुआ करता था । घर में किसी की शादी हो, बच्चा हुआ हो, नई जमीन, जायदाद खरिदी हो, पहले उस स्थान पर अपनी कुलगुरु कुलदेवी व कुलदेवता को भेंट अर्पीत करके उनसे आर्शिवाद लेते थे । और हर काम और खुशी में आगे हो मार्ग दर्शन करने को कहते थे ।
उस समय घर के बुजुर्ग साल में एक वार उस थान पे सपरिवार पुजा करते थे । फिर कुलदेवी देवता को भोग लगाकर सपरिवार भोजन ग्रहण करते थे । वह घर के छोटे छोटे काम भी विना कुलगुरु, कुलदेवी, कुलदेवता को पुछे विना नहीं करते थे । कही वहार की यात्रा भी करते थे तो कुलगुरु ,कुलदेवी, कुलदेवता से पहले अनुमती लेते थे । फिर ही यात्रा करते थे । घर के वडे वडे काम से लेकर छोटे से छोटे काम भी विना कुलदेवी के आज्ञा या अनुमती के वैगर नही करते थे ।
साल में दो बार कुलदेवी की साधना एवं हवन आवश्यक करवाते थे । और ये परम्परा कुछ घरों में आज भी करते है ।
हर घर की एक कुलदेवी होती हैं । आज भारत में 90% परिवार वाले को अपने कुलदेवी के वारे में पता ही नहीं है । कई परिवार को तो पिढियों से अपनी कुलदेवी एवं कुलदेवता का नाम तक पता नही है । उन पिढियों की पिढि दर पिढि में आज तक किसी ने भी कुलदेवी की पुजा आराधना नही कि और ना ही उने इस बारे कोई जानकारी है । और ना ही उनके पुर्वज ने उनको इस बारे में कोई ज्ञान दिया । घर में कुलदेवी व कुलदेवता की पुजा आराधना ना होने के कारण ही एक नकारात्मक दबाव उस घर के कुल के ऊपर बन जाता हैं । और अनुवांशिक समस्या पैदा होने लगती हैं ।
बहुत से घर एवं जगहों पर देखा हैं । कुलदेवी की कृपा के बिना अनुवांशिक बीमारी पीढ़ी में आ जाती है । एक ही बीमारी के लक्षण सभी लोगो में दिखते हैं । मनासिक विकृतियाँ अथवा तनाव, अशान्ति पूरे परिवार में आना, कुछ परिवार एय्याशी की ओर इतने जाते है कि सब कुछ गवा देते हैं, बच्चे भी गलत मार्ग पर भटक जाते हैं, शिक्षा में अड़चनें आती है, शादी विवाह समय पे ना होना, व्यापार में गिरावट आना, चलता फिरता काम एक दम से रुक जाना, अचानक स्वास्थ्य समस्या दिखना, सन्तान ना होना, कोट कचेरी के समस्या होना, मनासिक शान्ति ना होना, यात्राओं में अपघात होना, हर काम में दुर्घटना होना, व्यापार और जीवन में स्थिरता नहीं होना । परिवार के सदस्यों के बिच आपसी प्रेम का अभाव होना, कर्ज से मुक्ति ना मिलना आदि समस्या कुलदेवी एवं देवता का पुजा आराधना ना करने के कारण होता है ।
इन समस्या का समाधान किसी साधना या किसी ध्यान अथवा किसी दस महाविद्या के मंत्रो से दूर नहीं हो सकता । इन सब समस्यायों से छुटकारा पाना है, समाधान पाना है तो कुलदेवी, कुलदेवता का पुजा, आराधना, हवन आदि करना अति आवश्यक है । घर में उनको उचित स्थान देने की जरूरत है । साल में एक वार उनका गुणगान होना जरुरी है । नवरात्रा या विशेष तिथी में कन्या पुजन करके कुलदेवी का आव्हान करना अति आवश्यक है । कोई भी शुभ कार्य हो या पुजा आराधना हो । या दस महाविद्या की दीक्षा हो । सबसे पहले गुरु उस यजमान या साधक को कुलदेवी या कुलदेवता के वारे में पुछता है । और फिर वह पुजा आराधना आरम्भ करता है । कोई भी साधना हो या पुजा, सवसे पहले कुलदेवी की हि आराधना एवं पुजा का विधान है । विना उनके आर्शिवाद के कुछ भी संभव नही है । लेकिन आजकल पुजा, आराधना एवं साधना में गुरु सीधा मंत्र देते है या पुजा करवा देता है । वह कुलदेवी कुलदेवता का आव्हान करता ही नही है । जीस साधना या पुजा में कुलदेवी कुलदेवता का आव्हान नही होता है । यैसी पुजा, आराधना एवं साधना का कोई फल नही मिलता है ।
वह पुजा, आराधना एवं साधना ना होकर एक दिखावा रह जाता है । अगर आज इसे नहीं समझे तो आने वाली कल की पीढ़ी के लिए बहुत सी दिक्कतें आयेगी ।
घर को मंदिर बनाना है, सभी समस्या से दुर रहना है, जीवन वसन्त बहार की तरह बनाना है, घर में शान्त वातावरण, दुखकष्ट रहित जीवन और खुशीया ही खुशीया से भरना है तो हर पल, हर क्षण, हर खुशी, हर दुख में सबसे पहले अपने कुलदेवी को पुकारो । उनका आव्हान करो । उनको स्मरण करो । उनका आर्शिवाद लो । तुम्हारे हर काम वनने लग जायेगे । पतझड वगियाँ में वसन्त लौट आयेगा । चारों और खुशीयाँ ही खुशीयाँ होगी । और ये सव संभव है सिर्फ कुलदेवी, कुलदेवता कि आराधना, पुजा, मानसम्मान एवं उनके आर्शिवाद से ।