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*गजकेशरी योग और ज्योतिष शास्त्र*


✍🏻गजकेसरी योग एक बहुत ही शुभ योग माना जाता है। यह प्रमुख धन योगों में से एक होता है जो गुरु और चंद्र के योग से बनता है डॉ अशोक श्रीश्रीमाल ने बताया कि जातक की कुंडली के किसी भी भाव में गुरु व चंद्रमा की युति हो और किसी पाप ग्रह की दृष्टि उन पर न पड़ रही हो या कोई पाप ग्रह उनके साथ न हो तो यह योग बहुत शुभफलदायी माना जाता है। गजकेसरी योग का निर्माण गुरु और चंद्रमा की युति से होता है। या फिर केंद्र में गुरु और चंद्रमा एक दूसरे को देख रहे हों तो भी गजकेसरी योग का निर्माण होता है। प्रबल या कहें प्रभावकारी गजकेसरी योग का निर्माण गुरु की चंद्रमा पर पांचवी या नवीं दृष्टि से भी बनता है। यदि गुरु और चंद्रमा कर्क राशि में एक साथ हों और कोई अशुभ ग्रह इन्हें न देख रहा हो तो ऐसे में यह बहुत ही सौभाग्यशाली गजकेसरी योग बनाते हैं। इसका कारण यह भी है कि गुरु को कर्क राशि में उच्च का माना जाता है और चंद्रमा कर्क राशि के स्वामी होने से स्वराशि के होते हैं। प्रथम, चतुर्थ, सप्तम और दशम स्थान को केंद्र माना जाता है यदि शुभ भाव में केंद्र में गजकेसरी योग बन रहा हो तो यह भी शुभ फल देने वाला होता है इसके अलावा त्रिकोण में पांचवे या नौंवे भाव में भी गजकेसरी योग शुभ होता है। यदि छठे, आठवें या द्वादश भाव में यह योग न हो और गुरु की राशि मीन या धनु अथवा शुक्र की राशि वृष में बन रहा हो तो लाभ देने वाला रहता है। छठे, आठवें या बारहवें भाव में यह योग बन रहा हो तो बहुत कम प्रभावी होता है। चंद्रमा या गुरु की नीच राशि में यह योग बन रहा हो तो उसमें भी इस योग से मिलने वाले परिणाम नहीं मिलता यानि यह निष्फल रहता है। यदि नीच दोष भंग हो रहा हो तो ऐसे में इस योग के शुभ फल देने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।