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*जानें जन्म का पाया ओर ज्योतिष शास्त्र फलकथन*

 *जानें जन्म का पाया ओर ज्योतिष शास्त्र फलकथन*


✍🏻बच्चे का जन्म होते ही बड़े-बुजुर्ग यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि बच्चा किस पाए के साथ घर में आया है। कुंडली के बारह स्थानों को चार पायों में बाँटा गया है और इन्हें चार धातुओं-सोना, चाँदी, ताँबा और लोहे का नाम दिया गया है। 


डॉ अशोक श्रीश्रीमाल के अनुसार जन्म के समय चंद्रमा जिस स्थान पर होता है (कुंडली में) उसके अनुसार पाया जाना जाता है.!

*१:-सोने का पाया:-* जब चंद्रमा पहले, छठे या ग्यारहवें भाव में हो तो स्वर्ण पाद का जन्म समझा जाता है, श्रेष्ठता क्रम में यह तीसरे नंबर पर आता है। 

*२:- चाँदी का पाया:-*  चंद्रमा दूसरे, पाँचवे या नववें भाव में हो तो चाँदी के पाए का जन्म माना जाता है। श्रेष्ठता क्रम में यह सर्वोत्तम माना जाता है। 

*३:- ताँबे का पाया:-* चंद्रमा तीसरे, सातवें या दसवें स्थान में हो तो ताँबे का पाया होता है। श्रेष्ठता क्रम में यह दूसरे क्रम पर है।

*४:-लोहे का पाया:-* जब चंद्रमा चौथे, आठवें या बारहवें भाव में हो तो बच्चे का जन्म लोहे के पाए का होता है। यह पाया शुभ नहीं माना जाता!

वास्तव में चंद्रमा 4, 8, 12 में स्वास्थ्य हानि करता है इसलिए कदाचित लोहे के पाए को अशुभ माना गया है।

आपका मूलांक और संभावित रोग

 आपका मूलांक और संभावित रोग 



आपको कौन-से रोग हो सकते हैं इसका संबंध आपके मूलांक से भी है। आइए जानें आपको कौन-कौन से रोग हो सकते हैं—-


अंक 1 (जन्म तारीख: 1, 10, 19, 28) : मूलांक १ वाले व्यक्ति पित्त से संबंधित बीमारियां परेशान करती हैं। पित्त के घटने-बढ़ने पर समस्याएं उत्पन्न होती हैं। अंक ज्योतिष के अनुसार मूलांक 1 वाले लोगों को दिल की बीमारियां, दांत के रोग,सिर दर्द, नेत्र रोग, मूत्र संबंधी रोग आदि होने की संभावना रहती है।


अंक 2 (जन्म तारीख: 2, 11, 20, 29) : मूलांक 2 के लोगों को गैस के रोग, आंतों में सूजन, ट्यूमर, मानसिक दुर्बलता,संबंधी रोग आदि होने की संभावना रहती है।


अंक 3 (जन्म तारीख: 3, 12, 21, 30): मूलांक 3 वाले लोगों को स्नायु तंत्र यानी नर्वस सिस्टम के रोग,पीठ व पैरों में दर्द, चर्म रोग, गैस, हड्डियों के दर्द का रोग, गले का रोग और लकवा होने की आशंका रहती है।


अंक 4 (जन्म तारीख: 4, 13, 22, 31) : मुलांक ४ वाले लोगों को सांस की बीमारियां, दिल के रोग, ब्लड-प्रेशर, पैरों में चोट, अनीमिया, नींद की समस्य़ा, आंखों की समस्या, सिरदर्द, पीठ दर्द आदि की शिकायत हो सकती है।


अंक 5 (जन्म तारीख: 5, 14, 23) : मूलांक 5 के लोगों को आमतौर पर अपच और असिडिटी की समस्या से दो-चार होना पड़ता है। मानसिक तनाव, सिरदर्द, जुकाम, कमजोर नजर, हाथ और कंधों में दर्द, लकवा जैसे रोग होने की संभावना रहती है।


अंक 6 (जन्म तारीख: 6, 15, 24) : जिन लोगों का मूलांक 6 है उन्हें गले, गुर्दे, छाती, मूत्र- विकार, हृदय रोग एवं गुप्तांगों के रोग, डायबीटीज, पथरी, फेफड़ों के रोग आदि होने की संभावना रहती है।


अंक 7 (जन्म तारीख: 7, 16, 25) : मूलांक 7 के लोगों को बदहजमी, पेट के रोग, आंखों के नीचे काले धब्बे, सिरदर्द, खून की खराबी आदि की संभावना रहती हैं… फेफड़े संबंधी रोग, चर्म रोग और याददाश्त की कमजोरी का सामना भी करना पड़ सकता है।


अंक 8 (जन्म तारीख: 8, 10, 19, 28): मूलांक 8 के लोग लीवर के रोग, वात रोग सता सकते हैं। इसके अलावा, इन्हें मूत्र-संबंधी रोग आदि की संभावना है। इसके अलावा इन्हें डिप्रेशन की शिकायत होने की संभावना रहती है।


अंक 9 (जन्म तारीख: 9, 18, 27): मूलांक 9 वाले लोगों को पेट के विकारों, आग से जलने, मूत्र प्रणाली में विकार, बुखार-सिरदर्द, दांत के दर्द, बबासीर, रक्त विकार, चर्म रोग आदि होने की संभावना रहती हैं ।

*काले घोड़े की नाल के अचूक ज्योतिष उपाय*

 *काले घोड़े की नाल के अचूक ज्योतिष उपाय*


डॉ अशोक श्रीश्रीमाल 


*तंत्र क्रियाओं में अनेक वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। काले घोड़े की नाल भी उन्हीं में से एक है। ऐसा मानते हैं कि तंत्र प्रयोग में यदि काले घोड़े की नाल का प्रयोग किया जाए तो असंभव कार्य भी संभव हो जाता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार, वैसे तो किसी भी घोड़े की नाल बहुत प्रभावशाली होती है लेकिन यदि काले घोड़े के अगले दाहिने पांव की पुरानी नाल हो तो यह कई गुना अधिक प्रभावशाली हो जाती है। आइए जानते है काले घोड़े की नाल के कुछ अचूक ज्योतिष उपाय ।



*1. यदि दुकान ठीक से नहीं चल रही हो या किसी ने दुकान पर तंत्र प्रयोग कर उसे बांध दिया हो तो दुकान के मुख्य द्वार की चौखट पर नाल को अंग्रेजी के यू अक्षर के आकार में लगा दें। आपकी दुकान में ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगेगी और परिस्थितियां अनुकूल हो जाएंगी।*



*2. यदि शनि की साढ़े साती या ढय्या चल रही हो तो किसी शनिवार को काले घोड़े की नाल से बनी अंगूठी विधिपूर्वक दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण कर लें। आपके बिगड़े काम बन जाएंगे और साथ ही धन लाभ भी होगा।*



*3. यदि घर में क्लेश रहता हो, आर्थिक उन्नति नहीं हो रही हो या किसी ने तंत्र क्रिया की हो तो घर के मुख्य द्वार पर नाल को अंग्रेजी के यू अक्षर के आकार में लगा दें। कुछ ही दिनों में नाल के प्रभाव से सबकुछ ठीक हो जाएगा।*



*4.काले घोड़े की नाल से एक कील या छल्ला बनवा लें, शनिवार को पीपल के पेड़ के नीचे एक लोहे की कटोरी में सरसों का तेल भर कर ये छल्ला या कील उसमें डाल कर अपना मुख देखे और पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। इससे शनि दोष में कमी आएगी।*



*5. काले घोड़े की नाल एक काले कपड़े में लपेट कर अनाज में रख दो तो अनाज में वृद्धि होती है और तिजोरी में रख दें तो धन संबंधी लाभ होता है। घर में बरकत बनी रहती है।*



*6. अपने पैसों से किसी काले घोड़े के पैरों में नाल लगवा दें। इससे भी शनिदेव बहुत प्रसन्न होते हैं और भक्त की हर मनोकामना पूरी कर सकते हैं। इससे साढ़ेसाती व ढय्या के अशुभ प्रभाव में भी कमी आती है।*



*7. एक लोहे की कटोरी में सरसों का तेल लेकर उसमें काले घोड़े की नाल डाल दें। अब इस कटोरी को अपने सिर से पैर तक 7 बार घुमा कर किसी सुनसान जगह पर गाड़ दें। इससे बुरी नजर भी उतर जाएगी और यदि शनि दोष होगा तो वह भी कम होगा।*



*8. अपनी लंबाई के बराबर काला धागा लें और उसमें 8 गठानें लगा लें। इस धागे को तेल में डूबोकर काले घोड़े की नाल पर लपेट लें और शमी वृक्ष के नीचे गाड़े दें। इससे सभी प्रकार के दुख-तकलीफों से मुक्ति मिलेगी। ये बहुत ही अचूक उपाय है ।

*तत्वों के अनुसार राशियों का वर्गीकरण*

 *तत्वों के अनुसार राशियों का वर्गीकरण*


तत्वों के आधार पर सभी बारह राशियों को चार भागों में बाँटा गया है. यह चार तत्व अग्नि,पृथ्वी, वायु तथा जल है. जो राशि जिस तत्व में आती है उसका स्वभाव भी उस तत्व के गुण धर्म के अनुसार हो जाता है. उदाहरण के लिए किसी जातक की राशि जलतत्व है तब उसके स्वभाव में जल के गुण पाएं जाएंगे जैसे कि वह स्वभाव से लचीला हो सकता है और परिस्थिति अनुसार अपने को ढालने में सक्षम भी हो सकता है. जल की तरह नरम होगा तथा भावनाएँ भी कूट-कूटकर भरी होगी इसलिए शीघ्र भावनाओं में बहने वाला होगा.


 इसी तरह से अन्य राशियों के गुण भी उनके तत्वानुसार होगें. आइए जानने का प्रयास करते हैं।


अग्नि तत्व 

मेष, सिंह व धनु राशियां इस वर्ग में आती हैं. अग्नि तत्व वाले जातक दृढ़ इच्छा शक्ति वाले, कर्मशील और गतिशील रहते हैं. अग्नि के समान ज्वाला भी इनमें देखी जा सकती है और हर कार्य में अत्यधिक जल्दबाज भी होते हैं.


पृथ्वी तत्व 

वृष, कन्या व मकर राशियां इस वर्ग में आती हैं.व्यक्ति पृथ्वी के समान ही सहनशील होता है,मेहनती होता है, जमीन से जुड़ा होता है,धैर्य भी बहुत रहता है, संतोषी होता है तथा व्यवहारिक भी होता है. सांसारिक सुख चाहता है लेकिन समस्याओं के प्रति उदासीन रहता है.


वायु तत्व 

मिथुन, तुला तथा कुंभ राशियाँ इस वर्ग में आती हैं. जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस राशि का व्यक्ति वायु की तरह हवा में बहुत बहता है अर्थात अत्यधिक विचारशील होता है, सोचना अधिक लेकिन करना कम. कल्पनाशील बहुत होता है लेकिन इन्हें बुद्धिमान भी कहा जाएगा. अनुशानप्रिय होने के साथ विचारों को हवा बहुत देते है. मन के घोड़े दौड़ाते ही रहते हैं.


जलतत्व 

कर्क, वृश्चिक तथा मीन राशियाँ इस वर्ग में आती हैं. यह अत्यधिक भावुक तथा संवेदनाओं से भरे हुए रहते हैं. शीघ्र ही बातों में आने वाले होते हैं और खुद भी बातूनी होते हैं. स्वभाव से लचीले होते हैं और जिसने जो कहा वही ठीक है, अपने विचार इसी कारण ठोस आधार नहीं रखते हैं. मित्र प्रेमी होते हैं और स्वाभिमान भी इनमें देखा जा सकता है.

 


स्वभाव के अनुसार राशियों का वर्गीकरण


राशियों के स्वभावानुसार इन्हें तीन श्रेणियों में बाँटा गया है. चर, स्थिर तथा द्विस्वभाव राशि. हर श्रेणी में चार-चार राशियाँ आती है और इन श्रेणियों के अनुसार ही इनका स्वभाव भी होता है. आइए इसे भी समझने का प्रयास करते हैं.


चर राशि 

मेष, कर्क, तुला व मकर राशियाँ इस श्रेणी में आती है. जैसा नाम है वैसा ही इन राशियों का काम भी है. चर मतलब चलायमान तो इस राशि के जातक कभी टिककर नहीं बैठ सकते हैं. हर समय कुछ ना कुछ करते रहना इनकी फितरत में देखा गया है. व्यक्ति में आलस नहीं होता है, क्रियाशील रहता है.गतिशील व क्रियाशील इनका मुख्य गुण होता है. ये परिवर्तन पसंद करते हैं और एक स्थान पर टिककर नहीं रह पाते हैं. ये तपाक से निर्णय लेने की क्षमता रखते हैं.


स्थिर राशि 

वृष, सिंह, वृश्चिक व कुंभ राशियाँ इस श्रेणी में आती हैं. इनमें आलस का भाव देखा गया है इसलिए अपने स्थान से ये आसानी से हटते नहीं हैं. इन्हें बार-बार परिवर्तन पसंद नहीं होता है. धैर्यवान होते हैं और यथास्थिति में ही रहना चाहते हैं. इनमें जिद्दीपन भी देखा गया है. कोई भी काम जल्दबाजी में नहीं करते और बहुत ही विचारने के बाद महत्वपूर्ण निर्णय लेते हैं.


द्विस्वभाव राशि 

मिथुन, कन्या, धनु व मीन राशियाँ इस श्रेणी में आती है. इन राशियों में चर तथा स्थिर दोनों ही राशियों के गुण देखे जा सकते हैं. इनमें अस्थिरता रहती है और शीघ्र निर्णय लेने का अभाव रहता है. इनमें अकसर नकारात्मकता अधिक देखी जाती है.


डॉ अशोक श्रीश्रीमाल