जिस वक्त हम सिग्नेचर कर रहे होते हैं, उस वक्त हमारा शरीर, मन और बुद्धि एक साथ काम कर रहे होते है, और उतनी देर के लिए तीनों के एक साथ, एक लय में होने की वजह से हम ध्यानावस्था या मेडिटेशन में चले जाते हैं। यानी कि सिग्नेचर एक तरह से मेडिटेशन की अवस्था है जिसमें हम खुद को रेखाओं के द्वारा प्रस्तुत कर देते हैं।
एक पुरानी कहावत है कि मरने के बाद इंसान तारा बन जाता है। यह कहावत कितनी सही है यह अभी हमारे विषय का केंद्र नहीं है। लेकिन गूगल और हमारे ग्रंथों के अध्ययन से यह बात सामने आई है कि, हम खुद जीते जागते रूप में इस ब्रह्मांड का हिस्सा है और एक तारे या तारो के समूह के रूप में मौजूद हैं। जो आड़ी तिरछी रेखाएं हम अपने सिग्नेचर के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जिसकी रचना हम खुद अपने नेचर से करते हैं, वो रेखाकृति भी यूनिवर्स में, तारों के समूह के रूप में मौजूद है। हर व्यक्ति अपने सिग्नेचर के द्वारा, सिग्नेचर की आकृति की ही विशेष रेखाकृति से ब्रह्माण्ड से जुड़ा होता है। ब्रह्मांड की निरंतर गतिशीलता की वजह से तारों के समूह के रेखाकृति में भी प्रतिपल सूक्ष्म भिन्नताए प्रस्तुत होती हैं। इसी वजह से दो सिग्नेचर कभी भी एक समान नहीं बन पाते। बारीकी से देखा जाए तो दो सिग्नेचर में बहुत ही सूक्ष्म अंतर मौजूद होता है।