पितृ अमावस्या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र का आरंभ हो जाता है जो कि इस साल नहीं होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्त होते ही अधिकमास लग जाएगा। एसा क्यों और श्राद्ध के बाद क्या अधिक मास में शुभ कार्य वर्जित हैं। आइए समझने का प्रयास करते हैं।
हर साल पितृ पक्ष के समापन के अगले दिन से नवरात्र का आरंभ हो जाता है और घट स्थापना के साथ ९ दिनों तक नवरात्र की पूजा होती है। यानी पितृ अमावस्या के अगले दिन से प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्र का आरंभ हो जाता है जो कि इस साल नहीं होगा। इस बार श्राद्ध पक्ष समाप्त होते ही अधिकमास लग जाएगा।
इस साल १७ सितंबर २०२० को श्राद्ध खत्म होंगे। इस के अगले दिन अधिकमास शुरू हो जाएगा, जो १६ अक्टूबर तक चलेगा। इसके बाद १७ अक्टूबर से नवरात्रि व्रत रखे जाएंगे। इसके बाद २५ नवंबर को देवउठनी एकादशी होगी। जिसके साथ ही चातुर्मास समाप्त होंगे। इसके बाद ही शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन आदि शुरू होंगे।
पंचांग के अनुसार इस साल आश्विन माह का अधिकमास होगा। यानी दो आश्विन मास होंगे। आश्विन मास में श्राद्ध और नवरात्रि, दशहरा जैसे त्योहार होते हैं। आश्विन मास में मलमास लगना और एक महीने के अंतर पर दुर्गा पूजा आरंभ होना ऐसा संयोग करीब १६० साल बाद होने जा रहा है।लीप वर्ष होने के कारण ऐसा हो रहा है। इसलिए इस बार चातुर्मास जो हमेशा चार महीने का होता है, इस बार पांच महीने का होगा।
अधिकमास लगने के कारण इस बार दशहरा २६ अक्टूबर को दीपावली भी काफी बाद में १४ नवंबर को मनाई जाएगी।
क्या होता है अधिक मास
एक सूर्य वर्ष ३६५ दिन और करीब ६ घंटे का होता है, जबकि एक चंद्र वर्ष ३५४ दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग ११ दिनों का अंतर होता है। ये अंतर हर तीन वर्ष में लगभग एक माह के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अतिरिक्त आता है, जिसे अतिरिक्त होने की वजह से अधिकमास का नाम दिया गया है।
अधिकमास को कुछ स्थानों पर मलमास भी कहते हैं। दरअसल इसकी वजह यह है कि इस पूरे महीने में शुभ कार्य वर्जित होते हैं। इस पूरे माह में सूर्य संक्रांति न होने के कारण यह महीना मलिन मान लिया जाता है। इस कारण लोग इसे मलमास भी कहते हैं। मलमास में विवाह, मुंडन, गृहप्रवेश जैसे कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।
"अधिक मास को पुरषोत्तम मास क्यों कहते हैं..??"
पौराणिक कथाओं के अनुसार मल होने के कारण कोई इस मास का स्वामी होना नहीं चाहता था, तब इस मास ने भगवान विष्णु से अपने उद्धार के संबंध में प्रार्थना की। तब स्वयं भगवान विष्णु ने उन्हें अपना श्रेष्ठ नाम पुरषोत्तम प्रदान किया। साथ ही यह आशीर्वाद दिया कि जो इस माह में भागवत कथा श्रवण, मनन, भगवान शंकर का पूजन, धार्मिक अनुष्ठान, दान आदि करेगा, वह अक्षय फल प्रदान करने वाला होगा। इसलिए इस माह दान-पुण्य अक्षय फल देने वाला माना जाएगा।
१८ सितंबर से शुरू हो रहे अधिक मास में १५ दिन शुभ योग रहेंगे।
शुक्रवार, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र और शुक्ल योग में शुरू हो रहे अधिक मास के आखिरी दिन १७ अक्टूबर तक खास मुहूर्त और योग बन रहे हैं।
अधिक मास के दौरान सर्वार्थसिद्धि योग ९ दिन, द्विपुष्कर योग २ दिन, अमृतसिद्धि योग १ दिन और पुष्य नक्षत्र २ दिन तक आ रहा है।
पुष्य नक्षत्र भी रवि और सोम पुष्य होंगे। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ-हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है।
अधिक मास के अधिष्ठाता विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है।
अधिक मास की शुरुआत ही १८ सितंबर को शुक्रवार, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र और शुक्ल नाम के शुभ योग में होगी। ये दिन काफी शुभ रहेगा।
•"सर्वार्थसिद्धि योग"
ये योग सारी मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला और हर काम में सफलता देने वाला होता है। अधिक मास में ९ दिन ये २६ सितंबर एवं १,२,४,६,७,९,११,१७ अक्टूबर २०२० को ये योग रहेगा।
•"द्विपुष्कर योग"
द्विपुष्कर योग ज्योतिष में बहुत खास माना जाता है। इस योग में किए गए किसी भी काम का दोगुना फल मिलता है, ऐसी मान्यता है। १९ एवं २७ सितंबर को द्विपुष्कर योग रहेगा।
•"अमृतसिद्धि योग"
अमृतसिद्धि योग के बारे में ज्योतिष ग्रंथों की मान्यता है कि इस योग में किए गए कामों का शुभ फल दीर्घकालीन होता है। २ अक्टूबर २०२० को अमृतसिद्धि योग रहेगा।
•"पुष्य नक्षत्र"
इस बार अधिक मास में दो दिन पुष्य नक्षत्र भी पड़ रहा है। १० अक्टूबर को रवि पुष्य और ११ अक्टूबर को सोम पुष्य नक्षत्र रहेगा। यह ऐसी तारीखें होंगी, जब कोई भी आवश्यक शुभ काम किया जा सकता है।
आशा करता हूँ की अधिक मास को लेकर आप सभी के मन के संशय दूर हो गए होंगे ।